prathmik samank kise kahate hain
प्राथमिक समंकों का संकलन
प्राथमिक समंकों का संकलन निम्नलिखित विधियों से अध्ययन किया जाता है यह विधियॉं प्राथमिक विधियॉं कहलाती है।
1) प्रत्यक्ष व्यक्ति अनुसन्धान
2) अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान
3) संवाददाताओं से सूचना प्राप्ति
4) सूचकों द्वारा अनुसूचियॉं या प्रश्नावली भरवाकर सूचना प्राप्ति
5) प्रगणकों द्वारा अनुसूचियॉं भरना
1) प्रत्यक्ष व्यक्ति अनुसन्धान
प्रत्यक्ष व्यक्ति अनुसन्धान के अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता स्वयं अनुसन्धान के क्षेत्र में जाकर उन लोगों से जानकारी प्राप्त करता है जो अनुसन्धान के विषय के क्षेत्र में जानकारी रखते है। यह विधि से ऐसे अनुसन्धान के लिए सही होता है जिनका क्षेत्र सीमित तथा स्थानीय प्रकृति का होता है और जहा समंकों की मौलिकता, शुद्धता व गोपनीयता महत्वपूर्ण होती है। यदि अनुसन्धानकर्ता पक्षपात की भावना से दूर रहकर समंकों का संकलन करता है। तो इस विधि से संकलित समंक सर्वाधिक प्रमाणिक, परिशुद्ध तथा विश्वसनीय होते है। इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग यूरोपीय देशों में ली प्ले ने मजदूरों के आय तथा खर्च सम्बन्धी समंक को संकलित करने में तथा आर्थर यंग ने कृषि उत्पादन में भी अध्ययन किया था इस विधि के द्वारा समंक संकलित हेतु अनुसन्धानकर्ता का प्रशिक्षित, धर्यवान, निष्पक्ष, तटस्थ और दूरदर्शी होना अति आवश्यक है।
गुण - प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान रीति के प्रमुख गुण निम्नलिखित है -
1. इस विधि के द्वारा मौलिक समंकों का संकलन होता है।
2. संकलित समंक ज्यादा विश्वसनीय होते है।
3. समंकों का संकलन एक ही व्यक्ति के द्वारा किया जाता है। अत: समंकों में सजातीयता तथा
एकरूपता बनी रहती है।
4. इस विधि में लोचशीलता होता है क्योकि अनुसन्धानकर्त्ता जरूरत पड़ने पर थोड़ा-बहुत संशोधन करके
अभीष्ट सूचना को एकत्रित कर सकता है।
5. इस विधि में सत्य तथा विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त करना संभव होता है।
दोष - इस विधि के दोष निम्नलिखित है -
1. इस विधि प्रयोग केवल सीमित क्षेत्र में समंक का संकलन किया जा सकता है। विस्तृत जानकारी के इस
यह विधि उपयुक्त नहीं है।
2. इस विधि में समय के साथ धन भी अधिक लगता है।
3. इस विधि में अनुसन्धानकर्त्ता के व्यक्तिगत पक्षपात की सम्भावना होता है जिसके कारण से परिणाम
गलत के साथ एक तरफा हो सकता है।
4. सीमित क्षेत्र में होने वाले कारण की यह सम्भव है कि संकलित समंक पूरे समग्र का सही प्रतिनिधित्व
न करे जिसके परिणामस्वरूप भ्रमात्मक निष्कर्ष प्राप्त हो।
2) अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान -
इस विधि के अन्तर्गत सूचकों से प्रत्यक्ष रूप से समंक प्राप्त न करके उन लोगों से प्राप्त किये जाते है। जिनका समंकों से कोई प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध नहीं होता है। उन लोगों को साक्षी कहा जाता है तथा उनका लेखा किया जाता है। इस विधि में केवल उन्ही लोगों को साक्ष्य देने के लिए बुलाया जाता हैजो समस्या से पूर्ण रूप से परिचित हो, पक्षहरित हो तथा तथ्यों को स्पष्ट व सही ढंग से व्यक्त कर सकें । इस विधि का प्रयोग सामान्यत: जॉंच समितियों तथा आयोगों द्वारा किया जाता है। इस विधि की सफलता प्रश्नकर्त्ता के व्यक्तिगत गुणों जैसे- चतुराई, साहस तथा जानकारी प्राप्त करने की इच्छा पर निर्भर करती है। इस विधि में संकलित तथ्यों को पूर्णत: सत्य नहीं मान लेना चाहिए बल्कि इसमें जाने - अनजाने में किये गये पक्षपात की छूट भी दी जानी चाहिए ।
गुण - अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान रीति के प्रमुख गुण जो कि निम्नलिखित है-
1. इस रीति से व्यापक क्षेत्रों की जानकारी प्राप्त की जाती है जहॉं सूचको से प्रत्यक्ष सम्पर्क कर सकना
सम्भव नहीं होता है वहॉं यह रीति विशेष रूप से उपयोगी होता है।
2. इस विधि में समय के साथ धन एवं परिश्रम की बचत होती है।
3. इस विधि के अनुसार संकलित समंक अनुसन्धानकर्त्ता के व्यक्तिगत पक्षपात से प्रभावित नहीं होते
है।
4. अनुसन्धान में इस विधि से विशेषज्ञों की राय व उनके सुझाव प्राप्त किये जा सकते है।
दोष - अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान के निम्नलिखित दोष है-
1. इस विधि में सम्बन्धित लोगों से प्रत्यक्ष रूप से सम्पर्क स्थापित न करके अप्रत्यक्ष रूप से समंक
संकलित किये जाते है।
2. इस विधि में साथियों की लापरवाही, अज्ञानता व पक्षपात करने से समंकों दोष आ जाते है।
3) संवाददाताओं से सूचना प्राप्ति -
इस विधि के अनुसार अनुसन्धानकर्त्ता द्वारा विभिन्न स्थानों पर स्थानीय व्यक्ति तथा विशेष संवाददाता नियुक्त कर दिये जाते है। जो नियमित रूप से अपने अनुभवों के आधार पर अनुमानत: सूचना भेजते रहते है। संवाददाताओं के व्यक्तिगत अनुमानों में अशुद्धियों का रहना स्वाभाविक है, परन्तु सांख्यिकीय रूप से ये अशुद्धियाँ समकारी तत्व के कारण दूर हो जाती है। इस विधि का प्रयोग सामान्यत: समाचार - पत्र , पत्रिकायों द्वारा किया जाता है। सरकार भी फसल के अनुमान थोक मूल्य सूचकांक बनाने के लिए इस विधि को अपनाती है। वास्तव में यह रीति उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त रहती है। जिनमें अधिक शुद्धता की आवश्यकता नहीं होती है। केवल अनुमान और प्रवृतियॉं ही ज्ञात करनी होती है।
गुण - इस विधि द्वारा समंक संकलन के प्रमुख गुण निम्नलिखित है-
1. इस विधि में मितव्ययिता होती है, क्योंकि इसमें समय धन व परिश्रम की बचत होती है।
2. इस विधि द्वारा दूरस्थ क्षेत्रों में निरन्तर सूचना प्राप्त की जा सकती है।
दोष - इस विधि के प्रमुख दोष निम्नलिखित है-
1. इस विधि द्वारा संकलित समंको में शुद्धता व मौलिकता का अभाव होता है क्योंकि इसमें अनुमानों को ज्यादा महत्व दिया जाता है।
2. विभिन्न संवाददाताओं द्वारा विभिन्न विधियों के प्रयोग के कारण इस विधि में संकलित समंकों में एकरूपता का अभाव होता है1
3. सामान्यत: संवाददाताओं में एक ही प्रकार की पूर्व धारणाऍं होने के कारण समंक पक्षपात पूर्ण एवं एकांगी हो जाते है।
4) सूचको द्वारा अनुसूचियॉं या प्रश्नावली भरवाकर जानकरी प्राप्त करना -
इस विधि द्वारा संकलन हेतु एक अनुसूची या प्रश्नावली तैयार किया जाता है प्रश्नावली में अनुसन्धान से सम्बन्धित प्रश्न होते है। इस प्रश्नावली को सूचकों के पास डाक द्वारा भेज दिया जाता है और उनसे अनुरोध किया जाता है कि वे प्रश्नों के उत्तर लिखकर निश्चित तिथि तक लौटा दें। यदि जरूरी होता है तो सूचक को यह आश्वासन भी दे दिया जाता है कि उनके द्वारा दी गयी जानकारी पूर्णतया गुप्त रखी जायेगी। यह विधि ऐसे विस्तृत क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होती है। जहॉं सूचक शिक्षित होते हैं। सामान्यत: विचार सर्वेक्षण, उपभोक्ताओं की रूचियों का अनुसन्धान आदि इस विधि द्वारा किया जाता है।
गुण - इस विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित है। -
1. यह विधि मितव्ययी होती है।
2. सूचनाओं में मौलिकता होती है, क्योंकि यह स्वयं सूचकों द्वारा दी जाती है।
3. इस विधि द्वारा विस्तृत क्षेत्र से समंक संकलित किये जा सकते है।
दोष - इस विधि के प्रमुख देाष -
1. अधिकतर प्रश्नावालियाँ वापस नहीं आती है। तथा जो प्रश्नावलियाँ वापस आती भी है, उन्हे सावधानी से
नहीं भरा जाता है तथा पक्षपातपूर्ण भावना का समावेश रहता है जिससे भ्रामक निष्कर्ष निकलने की
सम्भावना रहती है।
2. इस विधि में लोचशीलता का अभाव होता है।
3. इस विधि द्वारा अशिक्षित व्यक्तियों से सूचना प्राप्त नहीं की जा सकती है।
5) प्रगणकों द्वारा अनुसूचियॉं भरना -
सूचकों द्वारा अनुसूचियाँ भरवाकर सूचना प्राप्त करने में बहुत सी कठिनाइयॉं आती है। तथा सूचनाऍं भी अधूरी प्राप्त होती है, अपर्याप्त तथा अशुद्ध होती है। इन कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए सम्बन्धित प्रश्नों की अनुसूची की बनाई जाती है। इस विधि में विभिन्न बातों का ध्यान रखा जाता है। सम्बन्धित प्रश्नों की अनुसूची की रचना की जाती है। परन्तु इन अनुसूचियों को सूचकों के पास डाक द्वारा न भेजकर कुछ प्रशिक्षक प्रगणक नियुक्त कर दिये जाते हैजो सूकों के पास स्वयं जाकर अनुसूचियॉं भरते है। इस विधि का प्रयोग कर संकलित समंकों की शुद्धता अनुसूची की श्रेष्ठता तथा प्रगणकों की योग्यता पर निर्भर होती है। प्रगणक के पास योग्य , ईमानदार, निष्पक्ष मेहनती, धर्यवान, अनुभवी तथा स्वभाव तथा रीति-रीवाज से पूर्णतया परिचित होने चाहिए। प्रगणकों के कार्य के निरीक्षण की व्यवस्था होना जरूरी है। यह विधि अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।
गुण - इस विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित है -
1. इस विधि द्वारा अत्यधिक विस्तृत क्षेत्र में सूचना प्राप्त की जा सकती है।
2. इसमें जटिल प्रश्नों के शुद्ध और विश्वसनीय उत्तर प्राप्त हो जाते है।
3. इस विधि में शुद्धता की मात्रा अधिक होती है।
4. इसमें व्यक्तिगत पक्षपात का विशेष प्रभाव नहीं पडता है क्योंकि प्रगणक सामान्यत: पक्ष व
विपक्ष दोनों प्रकार के होते है।
दोष - इस विधि के प्रमुख दोष निम्नलिखित है-
1. यह विधि ज्यादा खर्चीली होती है तथा इसमें समय भी अधिक लगता है।
2. इस विधि में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पडता है; जैसे - प्रगणकों को
प्रशिक्षिण देना, उनके कार्य का निरीक्षण आदि ।