द्वितीयक आँकड़ों के दो प्रकाशित स्रोत कौन-कौन से हैं?
अप्रकाशित स्रोत कौन कौन से हैं?
द्वितीय आंकड़ों से आप क्या समझते हैं?
प्रकाशित और अप्रकाशित स्रोत क्या हैं?
द्वितीयक समंक क्या है
द्वितीयक समंकों का स्रोत क्या है?
द्वितीयक स्रोत क्या है उदाहरण?
द्वितीयक आंकड़ों के प्रमुख स्रोत कौन कौन से हैं?
द्वितीयक समंकों के प्रयोग में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
द्वितीयक आँकड़ों का उपयोग करने के लिए क्या सावधानियां हैं?
द्वितीयक आंकड़ों के प्रयोग में कौन कौन सी सावधानियां आवश्यक है?
द्वितीयक समंक का स्रोत क्या है?
द्वितीय समंकों का संकलन
जब किसी अन्य अनुसन्धानकर्त्ता द्वारा संकलित, विश्लेषित एवं प्रकाशित सांख्यिकीय सामग्री द्वितीयक समंक कहलाती है । द्वितीयक समंक प्रकाशित एवं अप्रकाशित हो सकते है। इसकी विवेचना नीचे निम्नलिखित है-
(अ) प्रकाशित स्त्रोत -
सरकारी एवं गैर- सरकारी संस्थाऍं विभिन्न विषयों पर सांख्यिकीय सामग्री प्रकाशित करती रहती है। इसका उपयोग सम्बन्धित विषय के शोधकर्त्ता करते है।
1) सरकारी प्रकाशन - केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों के विभिन्न मन्त्रालयों व विभागों द्वारा समय-समय पर विभिन्न विषयों से सम्बन्धित समंक प्रकाशित होते रहते है। यह समंक शोधकर्त्ता के लिए ज्यादा विश्वासनीय के साथ उपयोगी होते है।
2) समितियो व आयोगों के प्रकाशन - सरकार द्वारा अलग- अलग विषयो पर जॉच कराने तथा विशेषज्ञों की राय या विचार प्राप्त करने के लिए जाँच समितियों व आयोगों का गठन करती है। उनके प्रतिवेदनों में महत्वपूर्ण तथ्य होते है। जैसे- वित्त आयोग, आय वितरण जॉंच समिति, कृषि मूल्य आयोग आदि ।
3) अर्द्ध- सरकारी प्रकाशन - अर्द्ध- सरकारी संस्थाऍं जैसे- नगर महापालिकाऍं, नगर निगम, जिला परिषद् , पंचायतें आदि को समय - समय पर सार्वजनिक स्वास्थ्य, जन्म-मरण सम्बन्धी रिपोर्ट प्रकाशित करती है।
4) व्यापरिक संस्थाओं व परिषदों के प्रकाशन - अनेक प्रकार की बडी व्यापारिक संस्थाऍं जैसे - टाटा सन्स लि., भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग संघ आदि स्कन्ध विपणियॉं, श्रम संघ अपने उत्पादन, लाभ आदि के बारे में समंक प्रकाशित कराते है।
5) अनुसन्धान संस्थाओं के प्रकाशन - अनेक अनुसन्धान संस्थाऍं एवं विश्वविद्यालय अपने शोधकार्यों के परिणाम प्रकाशित कराते हैं । जैसे - भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, व्यापरिक आर्थिक शोध की राष्ट्रीय परिषद् आदि ने अनेक प्रकार की रिपोर्टों को प्रकाशित किया है ।
6) पत्र- पत्रिकाऍं - समाचार - पत्र तथा पत्रिकाऍं जैसे - the economic times, commerce, Eastern economist आदि द्वारा प्रकाशित समंकों से अनेक उपयोगी सूचनाऍं प्राप्त होती है।
7) अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन - विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाऍं जैसे - राष्ट्र संघ , अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष महत्वपूर्ण समंकों का संकलन एवं प्रकाशन करते है।
8) व्यक्तिगत अनुसन्धानकर्त्ता - यह अपने - अपने विषयों पर अनेक शोधकार्य करके उनके अनेक समंकों को प्रकाशित करते है।
ब) अप्रकाशित स्त्रोत -
अनेक अनुसन्धानकर्त्ता , विभिन्न उद्देश्यों से सांख्यिकीय सामग्री संकलित करते हैंं जो अलग- अलग कारणों से प्रकाशित नहीं हो पाती है। इस प्रकार से अप्रकाशित रूप से भी द्वितीय समंक उपलब्ध हो जाते है।
द्वितीयक समंकों के प्रयोग सावधानियॉं -
द्वितीयक समंको का प्रयोग करने से पूर्व उसकी विधिवत जॉंच करनी चाहिए । इसके अतिरिक्त द्वितीयक समंकों के प्रयोग में निम्नलिखित सावधानियॉं रखनी चाहिए -
1) समंक संकलनकर्त्ता विश्वासनीय हो तथा उसके समंक संकलन में सही तरीके से प्रयोग किया हो ।
2) समंक उद्देश्य के अनुकूल होने चाहिए ।
3) समंक पर्याप्त होने चाहिए ।
4) समंक संकलन का समय व उसकी परिस्थितियों का अध्ययन कर लेना चाहिए ।
5) इस बात को पूरी तरह से जॉच कर लेनी चाहिए कि पूर्व अनुसन्धान में प्रयुक्त सांख्यिकीय इकाइयों के अर्थ वर्तमान प्रयोग के अनुकूल है या नहीं ।
6) द्वितीयक समंकों का उपयोग करते समय यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उनमें शुद्धता का स्तर क्या रखा गया था और उसे प्राप्त करने में कहॉं तक सफलता प्राप्त हुई । प्रकाशित समंकों की शुद्धता का स्तर उपयोगकर्त्ता द्वारा प्राप्त किये जाने वाले अनुसन्धान के स्तर से कम नहीं होना चाहिए ।
7) सजातीय दशाओं का अध्ययन करके विभिन्न स्त्रोतों द्वारा प्रकाशित समंकों की तुलना करके यह ज्ञात करना चाहिए कि उनमें अन्तर अधिक तो नहीं हैा यदि उनमें अन्तर बड़ा हो तों सर्वाधिक विश्वासनीय स्त्रोत से प्राप्त समंकों को लेना चाहिए ।
8) अनुसन्धानकर्ता को प्रस्तुत समंकों में से कुछ परीक्षात्मक जॉंच करके यह देख लेना चाहिए कि वह विश्वासनीय है या नहीं