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समंक का अर्थ व प्रकार, प्राथमिक समंक और द्वितीयक समंक में अंतर बताइए

प्राथमिक एवं द्वितीयक समंक में 6 अंतर बताइए

प्राथमिक एवं द्वितीयक समंक में अंतर बताइए

समंक कितने प्रकार के होते हैं
समंक के प्रकार
प्राथमिक समंक किसे कहते हैं
प्राथमिक तथा द्वितीयक समंक में अंतर
प्राथमिक एवं द्वितीयक समंक में तीन अंतर बताइए
प्राथमिक आंकड़ों एवं द्वितीयक आंकड़ों में कोई दो अंतर बताइए

प्राथमिक और द्वितीयक समंक में क्या अंतर है?


समंक तथा उनके प्रकार 


समंक से क्‍या अभिप्राय है- 


समंकों से अभिप्राय तथ्यो के उन समूह से होता है जो अनेक कारणों से पर्याप्त सीमा तक प्रभावित होते हैं जिन्हें संख्याओं के रूप में व्यक्त किया जाता है जिन्हें एक शुद्धता के उचित स्तर द्वारा गीना या की फिर अनुमानित किया जाता है। एक पहले से ही निश्चित उद्देश्य के लिए जिन्हें एकत्रित किया जाता है और जिन्हें एक दूसरे से संबंधित रूप में प्रस्तुत किया जाता है उसे समंक कहते हैं।


संकलन की दृष्टि से समंक के प्रकार 

1 प्राथमिक समंक

2 द्वितीयक समंक



  1. प्राथमिक समंक- वह समंक होते हैं जिन्हें अनुसंधानकर्ता द्वारा पहली बार किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ति हेतु संकलित किया जाता है 

दूसरे शब्दों में - जब अनुसंधानकर्ता द्वारा ही समंको का संकलन विश्लेषण तथा प्रकाशन किया जाए तो यह प्राथमिक समंक कहलाते हैं।


  1. द्वितीयक समंक - यह वह समंक होते हैं जिनका संकलन मौलिक रूप से किसी विशेष अनुसंधान के लिए किया गया हो परंतु उन्हें दुबारा किसी अन्य अनुसंधान में प्रयुक्त किया हो।

दूसरे शब्दों में द्वितीयक समंकों का अर्थ - जब कोई अनुसंधानकर्ता किसी अन्य अनुसंधानकर्ता द्वारा संकलित किए हुए उपलब्ध समंको को आधार मानकर अनुसंधान करता है तो यह द्वितीयक समंक कहलाते हैं।


जैसे - जनगणना द्वारा उपलब्ध समंक प्राथमिक समंक होते हैं। 

परंतु जब उन जनगणना  द्वारा उपलब्ध समंको का प्रयोग कोई अनुसंधानकर्ता द्वारा करता है तो वह द्वितीयक समंक कहलाते हैं ।


प्राथमिक समंक और द्वितीयक समंक में अंतर बताइए


प्राथमिक समंक

  •   द्वितीयक समंक

  • प्राथमिक समंक मौलिक होते है अनुसंधानकर्ता इन्हें स्वयं एकत्रित करता है।
  • प्राथमिक समंको के संकलन में धन समय परिश्रम तथा बुद्धि का प्रयोग करना पड़ता है। क्योंकि योजना को नये सिरे से प्रारंभ करना पड़ता है।
  • प्राथमिक समंक अनुसंधान के सर्वथा अनुकूल होते हैं इसलिए इसका प्रयोग करते समय किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं होती है।
  • प्राथमिक समंको के प्रयोग से सावधानी की कम आवश्यकता होती है।

1- द्वितीयक समंक मौलिक नहीं होते हैं

यह किसी व्यक्ति या संस्थान द्वारा पूर्व

काल में एकत्रित किए जा चुके होते हैं।

2- द्वितीय समंको को केवल उद्धत करना

पड़ता है इसलिए इसमें धन समय परिश्रम

व बुद्धि का प्रयोग काम करना पड़ता है।

3- द्वितीयक समंक किसी दूसरे उद्देश्य से

संकलित किए जाते हैं, इन्हें वर्तमान

उद्देश्य के अनुकूल बनाने के लिए संशोधन

करना पड़ता है।

4- द्वितीयक समंक के प्रयोग में सावधानी

की बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि

द्वितीयक समंक की जांच पड़ताल उनके

स्रोत उद्देश्य व अनुसंधान एजेंसी को देखे

बिना प्रयोग करना अत्यंत खतरनाक हो

सकता है। 


 


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