पैमाने के प्रतिफल का अर्थ
पैमाने के प्रतिफल किसे कहते हैं
पैमाने के प्रतिफल का चित्र
पैमाने के प्रतिफल की अवस्था
पैमाने के प्रतिफल की अवस्थाओं की व्याख्या कीजिए
पैमाने के प्रतिफल की अवधारणा को चित्र सहित समझाइए
पैमाने के बढ़ते प्रतिफल
पैमाने के बढ़ते प्रतिफल के क्या कारण है
पैमाने के प्रतिफल की अवस्थाएं कितनी होती हैं?
पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं?
वर्तमान प्रतिफल की अवस्था का क्या अभिप्राय है?
साधन के प्रतिफल तथा पैमाने के प्रतिफल से क्या आशय है?
पैमाने के बढ़ते प्रतिफल के क्या कारण है
पैमाने का प्रतिफल
पैमाने का अर्थ -
पैमाने का अर्थ से अभ्रिप्राय यह है कि लम्बे समय में उत्पादन करने वाले सभी साधनों को एक निश्चित अनुपात में परिवर्तन करना सम्भव होता है इसे पैमाना कहते है।
दूसरे शब्दों में - लम्बे समय में उत्पादन के सभी साधनों अर्थात स्थिर एवं परिवर्तन शील साधनों में परिवर्तन करके उत्पादन परिवर्तन करना सम्भव होता है।
पैमाने में वृद्धि का अर्थ -
सभी साधनों को एक ही अनुपात में बढ़ाने को हि पैमाने में वृद्धि कहा जाता है।
पैमाने से आशय क्या है-
पैमाने के प्रतिफल का आशय इस बात पर अध्ययन करता है कि यदि सभी साधनों में आनुपातिक परिवर्तन कर दिया जाये, ताकि साधनों के मिलने का अनुपात स्थिर रहे, तो उत्पादन में किस प्रकार का परिवर्तन होता ।
पैमाने के प्रतिफल की अवस्थाऍं
1) पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल की अवस्था ।
2) पैमाने के समान या स्थिर अवस्था ।
3) पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की अवस्था ।
1) पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल की अवस्था ।
पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल की अवस्था का अर्थ जब उत्पादन करने के सभी साधनों (अर्थात पैमाने) में वृद्धि करने पर उत्पादन में, साधनों में वृद्धि के अनुपात से अधिक वृद्धि होती है। तो उसे हि पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल कहते है।
उदाहरण -
यदि सभी साधनों को 35% से बढ़ाया जाये और उसके फलस्वरूप उत्पादन 40% बढ़ जाये तो 35 % से ज्यादा बढ़ने की इस स्थिति को पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल की अवस्था कहा जायेगा।
पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल के कारण -
1) विशिष्टीकरण -
उत्पादन के सभी साधनों अर्थात पैमाने में वृद्धि से श्रम - विभाजन तथा विशिष्टीकरण सम्भव हो जाता है। श्रम के विभाजन द्वारा उत्पादन में श्रमिकों को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य को दिया जाता है और वह लोग एक ही कार्य को बार-बार करने से वह ज्यादा कुशलता पूर्वक कार्य को करते है जिससे की श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि हो जाती है।
2) अविभाज्यता -
बढते हुए प्रतिफल का एक मुख्य कारण यह भी है तकनीकी तथा इसके साथ प्रबन्धकीय में अविभाज्यता सम्भव हो जाता है। साधन की अविभाज्यता से तात्पर्य है कि साधन का एक न्यूनतम आकार होता है ओर यदि यह उत्पादन की मात्रा की दृष्टि से बडा करना है तो उसे विभाजित नहीं किया जा सकता है। जब उत्पादन के पैमाने में वृद्धि की जाती है तो इन अविभाज्य साधनों का पूर्ण उपयोग होने लगता है जिसके परिणाम स्वरूप उत्पादन घटने लगता है।
3) आकार सम्बन्धी कुशलता -
पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल का एक मुख्य कारण आकार सम्बन्धी कुशलता है। एक उदाहरण के तौर पर इसे इस प्रकार समझा जाय की मान लीजिये एक लकडी का बॉक्स 4 फुट घन है 1 फुट घन लकडी के बाॅक्स की तुलना में 64 गुना अधिक माल रखा जा सकता है। जबकी बड़े बाॅक्स का निर्माण करने में छोटे बॉक्स की तुलना में 16 गुना ज्यादा लगेगी। किन्तु ध्यान रहे आकार सम्बन्धी कुशलता एक सीमा तक बढ़ जाती है। और इसके पश्चात बड़े आकार की कुशलता समाप्त हो जाती है।
2) पैमाने के समान या स्थिर अवस्था ।
पैमाने के समान या स्थिर अवस्था का अर्थ -जब उत्पादन करने वाले सभी साधनों में वृद्धि करने पर उत्पादन में, साधनों में वृद्धि के अनुपात के ठीक बराबर वृद्धि होती है तो उसे पैमाने के स्थिर या समान प्रतिफल कहते हैं।
उदाहरण - जैसे सभी साधनों को 35% प्रतिशत बढाया जाय जिसके फलस्वरूप उत्पादन भी 35% हि होता है तो इसे पैमाने के समान प्रतिफल की अवस्था कहा जायेगा।
3) पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की अवस्था ।
जब उत्पादन के सभी साधनों की मात्रा में वृद्धि करने पर उत्पादन में, साधनों में वृद्धि केे अनुपात से कम वृद्धि होती है तो उसे पैमाने के स्थिर या समान प्रतिफल कहते है।
उदाहरण - सभी साधनों को 25% से बढ़ाया जाये जिसके फलस्वरूप उत्पादन केवल 20% बढ़ जाये तो इसे पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की अवस्था कहते है।
पैमाने के घटते हुए प्रतिफल लागू होने के प्रमुख कारण होते है-
1) यदि उत्पादन के सभी साधनों को आनुपातिक रूप से बढ़ाया जाता है परन्तु समान योग्यता के संगठन एवं प्रबन्ध को उसी अनुपात में बढ़ाना सम्भव नहीं है। अत: पैमाने के घटते हुए प्रतिफल लागू हो जाते है।
2) पैमाने को एक सीमा तक बढ़ाने के उपरान्त प्राप्त होने वाली बचतें समाप्त हो जाती है तथा बचते नहीं हो पाती है।
3) उत्पादन के साधन पूर्ण स्थानापन्न नहीं होते है परिणामस्वरूप सीमान्त उत्पादन में कमी होने लगती है।
4) बडे पैमाने पर कार्य करना जोखिमपूर्ण होता है, अत: घटते हुए प्रतिफल प्राप्त होते है।
चित्र द्वारा व्याख्या
चित्र द्वारा व्याख्या (Exposition by Diagram)
चित्र 8.1 में पैमाने के तीनों प्रतिफल की अवस्थाओं को दर्शाया गया है। OX-अक्ष पर श्रम तथा OY-अक्ष पर पूँजी की मात्रा को दिखाया गया है। चित्र में 45° पर एक सीधी रेखा OS दिखायी गयी है जो पूँजी व श्रम के स्थिर अनुपात को बताती है। OS रेखा अपने मूलबिन्दु से जैसे-जैसे आगे बढ़ती है वैसे-वैसे पैमाने में वृद्धि होती जाती है। चित्र में IP1
से IPP7 तक सात समोत्पाद वक्र (isoproduct curve) दिखाये गये हैं जो क्रमश: 100 से 700 इकाई तक उत्पादन को व्यक्त करते हैं। ये समोत्पाद वक्र OS रेखा को असमान दूरी पर काटते हैं। पैमाना रेखा OS का प्रत्येक टुकड़ा श्रम (L) तथा पूँजी (K) की एक निश्चित मात्रा को बताता है। चित्र में IP1 समोत्पाद वक्र OS रेखा को A बिन्दु पर काटता है जो स्पष्ट करता है कि पूँजी की OK1 मात्रां तथा श्रम की OL1 मात्रा द्वारा 100 इकाई उत्पादन होता है। इसी प्रकार IP₂ से से IP7 तक समोत्पाद वक्र OS रेखा को B, C, D, E, F तथा G बिन्दुओं पर काटते हैं। अतः यह बिन्दु बताते हैं कि प्रत्येक अगली 100 इकाइयों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कितने श्रम व पूँजी की आवश्यकता होगी।
चित्र 8.1 से स्पष्ट है कि OA > AB > BC > CD अर्थात् प्रथम 100 इकाइयों के लिए जितने साधनों की आवश्यकता होगी, उससे कम साधन लगाकर उत्पादन की अगली 100 इकाइयाँ उत्पादित की जा सकती हैं। दूसरे शब्दों में, पैमाना रेखा OD विस्तार तक पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल मिल रहे हैं। इसके आगे CD = DE है अर्थात् स्थिर प्रतिफल प्राप्त होते हैं। इसके भी आगे DE < EF < FG की दशा है अर्थात् उत्पादन की प्रत्येक अगली 100 इकाइयों के उत्पादन के लिए श्रम तथा पूँजी दोनों साधनों की क्रमशः अधिक मात्राओं की आवश्यकता होगी। अतः DG विस्तार तक पैमाने के घटते हुए प्रतिफल प्राप्त हो रहे हैं।