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भारत में कीमत वृद्धि का एक प्रमुख कारण क्या है? कीमत में वृद्धि का क्या कारण है? भारत में कीमत वृद्धि के कारण बताइए


भारत में कीमत वृद्धि का एक प्रमुख कारण क्या है?

कीमत में वृद्धि का क्या कारण है?

भारत में कीमत वृद्धि के कारण बताइए

कीमतों की प्रवृति से क्‍या आशय है

 कीमतों की प्रवृति से आशय यह है कि वस्‍तुओं की मूल्‍यों के निर्देशांक में होने वाले जो परिवर्तन

होता है तों जब मूल्‍य का निर्देशांक बढता है तो उसे कीमतों के प्रवृति को बढी़ हुई कहा जाता है।

ठीक इसके व‍िपरीत जब मूल्‍य या कीमत का निर्देशांक कम होता है तो उसको कीमतो की

प्रवृति को घटती हुई कहा जाता है। 


कीमतों की भूमिका -


1) निर्णय सम्‍बन्‍धी कार्य - 

 अर्थव्‍यवस्‍था में कौन सी वस्‍तुओं को कितना उत्‍पादन किया जायेगा और वस्‍तुओं का उत्‍पादन

करने का ढ़ंग क्‍या होगा आदि बातों से कीमतों के आधार पर निर्णय लिया जाता है। एक उद्यमी

उन वस्‍तुओं का उत्‍पादन करता है जिन वस्‍तुओं की मूल्‍य या कीमत अधिक होता है।

इससे यह स्‍पष्‍ट है कि वस्‍तुओं के उत्‍पादन में लागत कम हो और उस वस्‍तुओं से लाभ अधिक होते है

। अत: लाभ को देेखकर हि उत्‍पादन, व‍िनियोग एवं उत्‍पादन तकनीकी का चयन किया जाता है।

तथा लाभ वस्‍तुओं की कीमतों पर निर्भर करता है।

 

2) संसाधनों का आबंटन - हम सभी या उपभोक्‍ता की आवश्‍यकता असीमित होती है। तथा आय या साधन सीमित होते है।

हम लोग अपनी आय से ज्‍यादा से ज्‍यादा सन्‍तुष्टि प्राप्‍त करना चाहते है। हम अपनी आय को

व‍िभिन्‍न वस्‍तुओं को खरीदते समय इस प्रकार से देखते है कि सबसे ज्‍यादा किस वस्‍तु को खरीदने

में ज्‍यादा सन्‍तुष्टि प्राप्‍त होगी । जिन वस्‍तुओं को खरीदने  के लिए हमारे पास पैसा या खरीदने के

लिए क्रयशक्ति होती है उन्‍हे हम खरीद लेते है । और जिन वस्‍तुओं के लिए खरीदने के लिए

क्रयशक्ति नहीं होती है उन्‍हे हम नहीं खरीदते है। इस कारण से क्रेताओं के बीच वस्‍तुओं तथा

वस्‍तुओं के बीच साधनों का आबंटन कीमतों के द्वारा किया जाता है। 


3) आर्थिक प्रगति -  आर्थिक व‍िकास के लिए आवश्‍यक है कि देश में पूँजी की मात्रा को वृद्धि करना तथा

उत्‍पादन करने की आधुनिक तकनीकों का प्रयोग होना चाहिए जिससे की कीमतों से लाभ

प्राप्‍त करने  में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है।  जिससे उद्यमी ज्‍यादा लाभ प्राप्‍त हो जिससे

अधिक पूँजी संचय हो और वह नये नये तकनीकि का प्रयोग करके ज्‍यादा से ज्‍यादा लाभ प्राप्‍त कर

सके । और इस प्रकार से कीमतों से आर्थिक व‍िकास करने में सहायक होता है। 


भारत में कीमतों की प्रवृति - 


नियोजन के समय में यदि कीमतों की प्रवृति को देखा जाय तो यह पता चलता है कि

भारत में प्रथम योजना में कीमतों के गिरावट का दौर कर रहा था। इस योजना के अन्‍तर्गत

थोक मूल्‍य सूचकांक में 17 प्रतिशत की गिरावट इुई थी। इसके बाद से कीमतों में निरन्‍तर

बढ़ने की प्रवृति रही है। और तीसरी योजना के बाद की समय में कीमते तेजी से बढ़ी है। 


योजनावधि के दशकों में भारत में थोक कीमत निर्देशांक नीचे चित्र में दिखाया गया है इन

निर्देशांकों से स्‍पष्‍ट रूप से सत्‍तर के दशक में कीमत निर्देशांक बहुत तेजी से बढ़ा है।

1950-51 में थोक कीमत निर्देशांक 6.8 था वह बढ़कर 2008-9 में 234 हो गया ।

इस प्रकार से इसमें 34  गुना वृद्धि हो गयी है। 

वर्ष 2004-5 से इस वर्ष को आधार वर्ष (2004-5 =100) मान कर थोक मूल्‍य निर्देशांक

की नई श्रृंखला जारी की गयी है । इस आधार पर थाेक कीमत का निर्देशांक 2005-06 में 104.5 था

जोे बढकर 2012-13 में 167.6 हो गया । 



वर्ष

निर्देशांक 

1950-51

1960-61

1970-71

1980-81

1990-91

2000-01

2008-09

2010-11

2012-13

6.8

7.9

14.3

36.8

73.7

155.7

234.0

143.0

167.0


थोक कीमत निदेशांक 


भारत में कीमत वृद्धि के कारण 


द्वितीय योजना के बाद भारत में कीमतों के बढ़ने की प्रवृति रही है ।

सरी योजना के बाद तो इसमें विशेष प्रकार से तेजी आयी है ।

अभी हाल में 1990- 91 के बाद कीमतें और तेजी से बढी है। 1990-91 में तो मुद्रास्‍फीति की दर

17 प्रतिशत के लगभग हो गयी थी । व‍ित्‍तीय वर्ष 2012-13 में भी दों अंको के लगभग बनी हुई थी। 


1) जनसंख्‍या की वृद्धि - सन् 1951 से जनसंख्‍या निरन्‍तर तेजी से वृद्धि हो रही है ।

जनसंख्‍या जो वर्ष 1950 में 36 करोड़ थी। वह वर्ष 2011 में बढ़कर 121.02 करोड हो गयी ।

इस प्रकार से पिछले 60 वर्षों से 85 करोड़ से अधिक जनसंख्‍या बढ़ रहीं है ।

जनसंख्‍या वृद्धि को भोजन, वस्‍त्र, ईधन आदि अनेक प्रकार की वस्‍तुऍं चाहिए  सरकार भी

इनके लिए शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, पानी आदि आधारभूत आवश्‍यकताओं की व्‍यवस्‍था करती है।

इस सब वस्‍तुओं  की  मॉंग में तेजी से वृद्धि के कारण कीमते बढ़ी है। 


2) सार्वजनिक खर्च में वृद्धि - योजना के समय पर सरकार के माध्‍यम से किये जाने

वाले खर्च बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है। केन्‍द्रीय सरकार का कुल खर्च जो 1950-51 में 504 करोड़

रूपये था वह बढ़कर 2012-13 में 14,30,825 करोड रूपये का हो गया । सार्वजनिक व्‍यय  में

वृद्धि के परिणामस्‍वरूप व्‍यक्तियों की आय तो बढ़ गयी परन्‍तु उत्‍पादन में भी व‍िशेष प्रकार से वृद्धि

नहीं हो पायी । अत: वस्‍तुओं की मॉंग बढ़ने पर कीमते बढ़ गयीं। 


3) घाटे की व‍ित्‍त व्‍यवस्‍था - योजनाओं में व‍िभिन्‍न परियोजनाओं के लिए साधन  के जुटाने के  लिए सरकार ने घाटे 

की व‍ित्‍त व्‍यवस्‍था अर्थात नयी मुद्रा के सृजन का सहारा लिया है। जिसके परिणामस्‍वरूप

बाजार  में उपलब्‍ध वस्‍तुओं की तुलना में मुद्रा की मात्रा बढ़ गयी और कीमते तेजी से बढ़ी। 


4) मुद्रा - पूर्ति में वृद्धि - जनता के पास मुद्रा के पूर्ति में तेजी से वृद्धि का भी कीमतों को बढ़ाने में महत्‍वपूर्ण

योगदान रहा है। जनता के पास मुद्रा (नोट, सिक्‍के  तथा जमा-मुद्रा) 1950-51 में 2,020

करोड रूपये थी जो कि बढ़कर 2010-11  में  64,99,548 करोड रूपये हो गयी।

मुद्रा की पूर्ति के  बढ़ जाने व उत्‍पादन में उतनी  वृद्धि न हो पाने के कारण कीमतें बढ़ गयी। 


5) व‍िदेशी व‍िनिमय कोष में वृद्धि - पिछले कुछ वर्षों में भारत देश के व‍िदेशी व‍िनिमय कोषों में तेजी  से  वृद्धि हुई है।

जिसके कारण व‍िदेशों में रह रहे भारतीयों द्वारा देश में  व‍िदेशी मुद्रा भेजना व सरकार द्वारा

इन जमाओं पर ऊॅंची ब्‍याज देना, करों में छूट देना आदि  नीतियॉं प्रमुख  है। विदेशी व‍िनिमय के

अन्‍तर्प्रवाह से भारत में वस्‍तुओं व सेवाओं की मॉंग तेजी से बढ़ी है। जिससे कीमतें बढ़ गयी है। 


6) प्रशासित कीमतों में वृद्धि - अनेक वस्‍तुओं, जैसे - पेट्रोल, कोयला, इस्‍पात, सीमेन्‍ट आदि की कीमतों सरकार द्वारा

निर्धारित करती है। पिछले वर्षों में अपने घाटे को कम करने के लिए सरकार ने इन वस्‍तुओं

की कीमतों में तेजी से वृद्धि की है। इसके अतिरिक्‍त सरकार कृषि पदार्थों के न्‍यूनतम समर्थित मूल्‍य

व वसूली मूल्‍यों की घोषणा करती है। पिछले वर्षों में सरकार ने इन मूल्‍यों में वृद्धि की है।

इस सबके परिणामस्‍वरूप कीमतों की प्रवृति तेजी से बढ़ रही है। 


7) अपर्याप्‍त कृषि व औद्योगिक उत्‍पादन - भारत में ज्‍यादातर कृषि आज भी मानसून पर निर्भर करती है। जिसके कारण

कृ‍षि के उत्‍पादन में भारी मात्रा में उतार चढ़ाव होते रहे है। जब मानसून ने साथ नहीं देता है

तो जितना लक्ष्‍य  पूरे नहीं हो सके और कृषि वस्‍तुओं की कीमतें बढ़ गयी । इसी प्रकार औद्योगिक

उत्‍पादन में वृद्धि सन्‍तोषजनक नहीं रही  है। उपभोग वस्‍तुओं का उत्‍पादन मॉंग के अनुरूप नहीं

बढ़ सका है। इस सबके परिणामस्‍वरूप कीमत बढ़ गया। 


8) जमाखोरी एवं सट्टेबाजी - भारत देश में कीमत वृद्धि का एक कारण जमाखोरी व सट्टेबाजी की प्रवृत्तियॉं है।

कीमतो के  बढ़ने की आशा होने पर लाभ कमाने के लिए उत्‍पादक व व्‍यापारी काले धन से

बड़ी मात्रा में वस्‍तुओं का संग्रह कर  लेते है। वर्ष 2003 से वस्‍तुओं विशेषकर खाद्यान्‍नों व दालों के

वायदा कारोबार से इस प्रवृति को ओर बढ़ावा मिला है। जिसके  परिणामस्‍वरूप वस्‍तुओं की पूर्ति

कम हो जाती है इसके कारण कीमतें बढ़ने लगती है। 


9) आयात की ऊँची कीमतें - भारत में कीमतेां में वृद्धि का एक कारण आयातित वस्‍तुओं की कीमतें बढ़ने है हमें पेट्रोल,

उर्वरक, रसायन, खाद्य  तेल आदि वस्‍तुओं का बड़ी मात्रा में लाया जाता है। और इनकी ऊँची

कीमत को चुकाना पड़ता है। 



इसे भी पढे -

  1. कीमत वृद्धि के परिणाम

  2. कीमत वृद्धि रोकने हेतु सरकारी उपाय 

  3. कीमत वृद्धि के उपचार हेतु सुझाव 

  4. कीमतों की भूमिका बताइए

  5. भारत में कीमतों की प्रवृति समझाइए 

  6. कीमत वृद्धि के परिणाम समझाइए 

  7. भारत में कीमत वृद्धि के उपचार हेतु पॉंच सुझाव दीजिए