उत्पत्ति वृद्धि नियम क्या है
utpatti vridhi niyam kya hai
जब उत्पादन में एक या एक से अधिक साधनों को स्थिर रखा जाए और परिवर्तनशील साधनो की मात्रा को बढाया जाय तो प्राम्भ में परिवर्तनशील साधनों को बढाने से सामान्य अनुपात की मात्रा से अधिक उत्पादन बढता है। जो उत्पादन में बढाने की इस प्रक्रिया या प्रवृति को ही उत्पति वृद्धि का नियम कहते है।
उत्पत्ति वृद्धि नियम परिभाषा
utpatti vridhi niyam ki paribhasha
प्रो. मार्शल के अनुसार – श्रम तथा पूजी की मात्रा को बढाने से सामान्यत: संगठन में सुधार होता है जिसके परिणाम स्वरूप श्रम तथा पूजी की कार्य करने की कुशलता बढ जाती है।
प्रो. मार्शल के अनुसार यह - उत्पत्ति वृद्धि नियम केवल उद्योगों में ही लागू होता है। लेकिन आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह नियम उत्पादन के सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू होता है। चाहे वह कृषि का क्षेत्र हो या फिर उद्योग हो ।
उत्पत्ति वृद्धि नियम का क्षेत्र स्पष्ट कीजिए |
प्र.19 उत्पत्ति वृद्धि नियम का क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
utpatti vridhi niyam ke kshetra spasht kijiye
उत्पत्ति वृद्धि का नियम उत्पादन के सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू होता है। परन्तु जो कार्यशीलता है वह अन्य क्षेत्र के तुलना में उद्योग निर्माण के क्षेत्र में अधिक प्रभावशाली या स्पष्ट है। उत्पत्ति वृद्धि का नियम यह है कि उद्योगों में लगने वाले साधनों की मात्रा को बहुत आसानी तरीके से परिवर्तन किया जा सकता है। जिसके परिणाम स्वरूप बहुत बडे पैमाने पर बचत एवं श्रम विभाजन के लाभ की सुविधा को प्राप्त किया जा सकता है।
उत्पत्ति वृद्धि नियम की सीमाए लिखिए | utpatti vridhi niyam ki seemayen
1. जब परिवर्तनशील साधन की इकाइ् या मात्रा को स्थिर साधनों की तुलना में छोटी होने पर ही यह नियम क्रियाशील होगा अन्यथा प्रारम्भ से ही उत्पत्ति ह्रास नियम लागू हो जायेगा ।
2. उत्पत्ति वृद्धि का नियम हमेंशा क्रियाशील नहीं होता है। जब तक कि आदर्श संयोग स्थापित नहीं हो जाता है। तब तक उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होगा ।एक यह संयोग स्थापित हो जाने के बाद परिवर्तनशील मात्रा बढायी जाने पर उत्पत्ति ह्रास नियम लागू हो जाता है।
उत्पत्ति वृद्धि नियम का कारण लिखिए | उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होने के कारण
1. 1. साधनों का अनुकूलतम संयोग – श्रीमती जॉन राबिन्सन के अनुसार – उत्पादन अनेक प्रकार के अविभाज्य साधनों का पूर्ण प्रयोग तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि उन पर अन्य सान अधिक मात्रा में नही लगाये जाते है। अत: प्रारम्भ में कम साधन लगाने पर साधनों के बीच अनुकूलतम अनुपात स्थापित नहीं हो पाता है। और उत्पादन कम होता है। और जब तक की उन साधनों की मात्रा को बढाया जाता है जो कि अनुकूलतम अनुपात की दृष्टि से कम थे तो धीरे – धीरे उत्पादन के विभिन्न साधनो के मध्य आदर्श अनुपात स्थापित हो जाता है। जिसके कारण उत्पादन की क्षमता बढने प्रवृति दिखने लगती है।
2. 2. स्थिर साधनो का आकार बडा होना – जब किसी वस्तु का उत्पादन करने के लिए प्रयोग में लाये गये स्थिर साधनों का आकार बहुत बडा होता है तो परिवर्तनशील साधनों की मात्रा कम लगाने पर उत्पादन क्षमता में निम्न स्त्र रहता है और जैसे हि परिवर्तनशील साधनों की मात्रा को बढाने पर उत्पादन करने कि क्षमता बढने लगती है।
3. 3. बडे पैमाने पर उत्पत्ति की बचते – परिवर्तनशील साधनों की इकाइ या कि मात्रा बढाने पर उत्पादन करने की क्षमता या कि पैमाना बड़ा होने लगता है। जिसके कारण बड़े पैमाने पर पर आन्तरिक तथा बाहरी बचते प्राप्त होने लगती है। जिससे की उत्पादन की प्रति इकाई में लागत की कमी होती है। और उत्पत्ति वृद्धि की नियम क्रियाशील हो जाता है।
उत्पत्ति वृद्धि नियम की व्याख्या कीजिए यह नियम क्यों क्रियाशील होता है?
utpatti vridhi niyam ki vyakhya kijiye ।
उत्पत्ति वृद्धि नियम की व्याख्या कीजिए
उत्पत्ति वृद्धि का नियम इस धारणा पर आधारित है जो कि उत्पादन की वृद्धि करने से संगठन पर सुधार होता है। जिससे की कार्य करने की क्षमता बढती है। और बडे पैमाने पर आन्तरिक एवं बाहरी दोनों ओर बचते प्राप्त होने लगती है। तथा उत्पत्ति के स्थिर तथा अविभाज्य साधनों का प्रयोग भली – भाति होने लगता है इन सभी कारणों से सीमान्त उत्पादन बढ़ता है। इसके साथ हि कुल उत्पादन बढ़ती हुई दर से बढ़ता है। परन्तु उत्पादन में यह वृद्धि एक सीमा तक हि होती है। जिससे कि साधनों के अनुकूलतम संयोग के पश्चात सीमान्त और औसत उत्पादन बढ़ने की बजाय घटने लगते है।
उत्पत्ति वृद्धि का नियम को उदाहरण के अनुसार समझते है मान लिया कि उत्पत्ति के अन्य साधनों को स्थिर रखकर श्रम की मात्रा में वृद्धि की जाती हैतो उत्पादन इस प्रकार प्राप्त होती है।