उत्पत्ति के नियम क्या है utpatti ke niyam
utpatti ke niyam se aashay
उत्पादन का कार्य करने के लिए अलग-अलग साधनों को एक साथ प्रयत्न करने की आवश्यकता होती है । जैसे श्रम, पूजी, प्रबन्ध आदि जब एक साथ मिलकर प्रयत्न करते तभी तो उत्पादन का कार्य सम्पन्न होता है। उत्पत्ति के इन साधनों को किस तरह मिलाया जाय कि जो उत्पादक को ज्यादा उत्पादन प्राप्त हो सके । हमेंशा यह देखने को मिलता है कि जब उत्पादन काम में किसी भी एक साधन को स्थिर रखने पर अन्य साधनों की में वृद्धि की जाती है तो उत्पादन क्षमता में वृद्धि की प्रवृत्ति एक जैसे नहीं होती है यह कभी उत्पत्ति के साधनो के अनुपात से अधिक और कभी कम अनुपात से कम बढने की प्रवृत्ति को दिखाता है। उत्पादन कार्य में कुछ साधनों की वृद्धि करने पर उत्पादन की मात्रा में किस अनुपात में परिवर्तन होगा इसेे ज्ञात करने के लिए अर्थशास्त्रियों ने उत्पत्ति के तीन नियम प्रतिपादित कियेे है -
1) उत्पत्ति ह्रास नियम,
2) उत्पत्ति वृद्धि नियम
3) उत्पत्ति समता नियम
उत्पत्ति ह्रास नियम से क्या आशय है| utpatti ke niyam se aashay pdf
उत्पत्ति ह्रास नियम सेे आशय उत्पत्ति में लगने वाले कुछ साधनों को स्थिर रख कर अन्य साधनों की मात्रा में वृद्धि के फलस्वरूप उत्पादन की मात्रा पर पडने वाला प्रभाव की व्याख्या करता है।
उत्पत्ति ह्रास नियम की परिभाषा| utpatti ke niyam ki paribhasha
श्रीमती जॉन रोबिन्सन के अनुसार - उत्पत्ति ह्रास नियम यह बताता है कि किसी एक साधन की मात्रा को स्थिर रखा जाय तथा अन्य साधनों की मात्रा में क्रमानुसार वृद्धि की जाय, तो एक बिन्दू के पश्चात उत्पादन में घटती हुई दर से वृद्धि होगी।
उत्पत्ति ह्रास नियम की सीमाएं| utpatti ke niyam ki seemaen
1) इसमें यह मान लिया जाता है कि अत्पत्ति के साधनों के मिलने के अनुपात में अपनी स्वच्छा अनुसार परिवर्तन सम्भव है।
2) इस नियम में यह आवश्यक हक् कि अन्य साधनों को स्थिर रखकर एक साधन को परिवर्तन शील रखा जाये या कि एक साधन को स्थिर रखकर अन्य लगने वाले साधनोंं को परिवर्तनशील रखा जाय ।
3) परिवर्तनशील साधनों की सभी इकाइयॉ समान रूप होती है।
4) संगठन, उत्पादन तकनीक इत्यादि में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
5) यह जो नियम हैै उसका सम्बन्ध उत्पादित वस्तु की भौतिक मात्रा से है न कि उत्पादन होने वाली वस्तु की किमत से है।
उत्पत्ति ह्रास नियम की क्षेत्र| utpatti ke niyam ke kshetra
प्रो. मार्शल के शब्दों के अनुसार - यह नियम केवल कृृृषि या कि इससे सम्बंधित व्यवसायों में हि लागू होता है। परन्तु उद्योग निर्माण में लागू नहीं होता है। परन्तू ऐसा सोचना गलत हैै क्योंकि आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार उत्पत्ति के किसी एक या एक से अधिक साधनों को स्थिर रख करके, अन्य साधनों की मात्रा में परिवर्तन करने पर अनुकूलतम संयोब के बाद यह नियम आवश्यक रूप से लागू होता है चाहे वह कृषि के क्षेत्र हो या फिर निर्माण उद्योग या उत्पादन का कोई अन्य क्षेत्र भी हो सकता है।
उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने का मुख्य कारण | utpatti harsh niyam lagu hone ke karan
1) एक या एक से अधिक साधलों का स्थिर होना - जब अन्य साधनो को स्थिर रखा जाए तथा एक साधन में परिवर्तन अर्थात बढायी जाती है तो इस परिवर्तनशील साधनों को स्थिर साधनों की क्रमश: कम मात्रा में कार्य करना पडता है। जिसके कारण साधनों का अनुकूलतम संयोग भंग हो जाता है। ऐसी परिवर्तनशील साधनों उत्पादन की क्षमता कम होती जाती है। तथा उत्पति ह्रास नियम लागू हो जाता है।
2) उत्पत्ति के साधनों का अपूर्ण स्थानापन्न होना - श्रीमती जॉन रोबिन्सन के अनुसार एक साधन को दूसरे साधन के स्थान पर एक सीमा तक प्रतिस्थापन किया जा सकता है। इसलिए उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है। अत: साधनों की अपूर्ण स्थानापन्नता के कारण एक अवस्था केे पश्चात उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने लगता है।
उत्पत्ति ह्रास नियम का महत्व | utpatti harsh niyam ka mahatva
1) उत्पत्ति ह्रास नियम अर्थशास्त्र का आधारभूत नियम हे जो कि उत्पादन क्रियाओं के सभी क्षेत्रों में निश्चित रूप से लागू होता है।
2) प्रो. माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत भी इसी नियम पर आधारित है।
3) प्रो. रिकार्डों का लगान सिद्धांत भी उत्पत्ति नियम पर आधारित है।
4) उत्पत्ति के साधनों के पुरस्कार निर्धारित करने वाला सीमान्त उत्पादकता सिद्धांत भी इसी नियम पर आधारित है।
5) इस नियम का प्रभाव किसी देश के निवासियों के जीवन-स्तर पर भी पडता है जैसा कि विदित है उत्पादन कार्य में जैसे-जैसे उत्पत्ति साधनों में वृद्धि की जाती है । वैसे - वैसे उत्पादन की मात्रा के बिन्दूू के अनुसार तेजी से घटती है जिसके कारण उत्पादन लागते बढती है तथा वस्तुओं की कीमत में बढने लगती है जिससे कि देश के निवासियों के जीवन स्तर पर भी गिरावट होती है।