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सतत विकास क्या है । सतत विकास से आप क्या समझते हैं ।सतत विकास की परिभाषा क्या है । सतत विकास किसे कहते हैं सतत विकास की विशेषताओं




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 सतत विकास क्या है satat vikas kya hai सतत विकास pdf

आर्थ‍िक विकास को जल्‍दी से प्राप्‍त करने की इच्‍छा से प्राकृतिक संसाधनों के अधिक से अधिक दोहन करना ज्‍यादा ऊर्जा की खपत करना,  एवं  प्रदूषण प्रोद्योगिकी को बढ़ावा देना है। जिससे बडे पैमाने पर औद्योगीकरण एवं परिवहन का ज्‍यादा विस्‍तार, संचार के साथ अन्‍य आधारिक संरचना एवं जनसंख्‍या वृद्धि के होने के कारण स्‍वच्‍छ पर्यावरण एवं सुद़ढ़ प्राकृतिक संसाधनों के संरंक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पर्यावरणीय क्ष्‍ाति न केवल प्रथम पीढ़ी के लिए भी हानिकारक होती है। दूसरे शब्‍दों में यह पर्यावर्णिक पहलुओं पर कोई विचार किये बिना आर्थिक विकास न केवल वर्तमान पीढी को बल्कि भावी   पीढि़यों के जीवन की गुणवत्‍ता को हानि पहुचाती है। इसलिए आर्थिक विकास के साथ एवं पर्यावरण सुरक्षा की आवश्‍यकता के बीच संतुलन को बनाये रखने के उद्देश्‍य से ही सतत विकास की  अवधारणा में विकसिक हुई  है। 

सतत विकास से आप क्या समझते हैं satat vikas se aap kya samajhte hain

सतत विकास वर्तमान एवं भावी पीढि़यों की अन्‍तर में कमी  से सम्‍बंधित है सतत विकास में इस बात की चिन्‍ता होती होती हैकि विकास हेतु भावी पीढ़ी  की सक्षमता वर्तमान पीढ़ी के समान हो । आर्थिक विकास तभी सतत विकास कहलाता है। जबकी कुल पूँजी परिसम्‍पत्ति का भण्‍डार समय के साथ या तो परिवर्तित न हो या उसमें वृद्धि न हो । इस कुल पूँजी परिसम्‍पत्ति में विनिर्माण पूँजी, मानव पूँजी, सामाजिक पूँजी, तथा पर्यावरण पूँजी भी शामिल की जाती है। 

सतत विकास आर्थिक कार्य में कुशलता तथा पीढी  समान्‍ता में अन्‍तर और सामाजिक महत्‍व के क्षेत्रों एवं पर्यावर्णिक संरक्षण के तत्‍वों को एक साथ मिलाना है। 

सतत विकास परिभाषा । सतत विकास की परिभाषा क्या है । सतत विकास किसे कहते हैं
सतत विकास का अर्थ एवं परिभाषा

ब्रन्‍टलैण्‍ड कमीशन (1987) के अनुसार - '' भावी पीढि़यों की सक्षमता में समझौता कियो बिना वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करना हि सतत विकास कहलाता है।''

सतत विकास के उद्देश्य । सतत विकास के लक्ष्य । सतत विकास लक्ष्य 3


1) सतत् विकास का प्रमुख उद्देश्‍य आर्थिक क्रियाकलापों के विशुद्ध लाभों का अधिकतम करना होता है। 

 2) सतत् विकास के लिए आवश्‍यक है कि उत्‍पादक परिसम्‍पत्तियों (भौतिक, मानवीय, पर्यावर्णिक ) आदि सभी के स्‍टॉक में संरक्षित करके रखा जाय। 

 3) गरीबों की मूलभूत आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए एक सामाजिक सुरक्षा तन्‍त्र प्रदान किया जाय ।


सतत विकास की विशेषताओं | satat vikas ki visheshtaen

1) वास्‍तविक प्रति व्‍यक्ति आय में वृद्धि - सतत विकास मे प्रति व्‍यक्ति वास्‍तविक आय में वृद्धि होनी चाहिए और यह वृद्धि लम्‍बे समय तक होनी चाहिए । 

2) प्राकृतिक साधनों का विवेकपूर्ण प्रयोग - सतत् विकास में प्राकृतिक साधनों का विवेकपूर्ण ढंग से दोहन किया जाना चाहिए दूसरे शब्‍दों में प्राकृतिक साधनों का ज्‍यादा ज्‍यादा दोहन नहीं करना चाहिए । 

3) भावी पीढ़ी की सक्षमता में कमी नहीं - सतत् विकास में वर्तमान पीढी के आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए भावी पीढ़ी की सक्षमता में किसी प्रकार की  कोई कमी  नहीं होनी चाहिए । जैसे कि पर्यावरण  पूँजी - तेल, खनिज,वन आदि का उत्‍पादन इस प्रकार किया जाये कि वह इतनी ही मात्रा में बचा रहें। जिससे भावी पीढ़ी को आवश्‍यकता को भी पूरा किया जा सके। 

4) पर्यावरण की सुरक्षा - सतत् विकास में जीवन की स्‍तर में बढ़ाने के साथ पर्यावरण  संरक्षण का भी ध्‍यान रखा जाता है। यह उन आर्थिक क्रियाओं को या कार्यों की मान्‍यता नहीं देता है जिससे की जीवन की गुणवत्‍ता मे कमी  करते है। 

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सतत विकास की माप । सतत विकास को मापना कठिन क्यों है?

सतत् विकास को मापने के लिए सूचक बनाये गये है । उनमें अधिकांशत: आर्थिक व पर्यावरण जगत से संबंधित है। इसमें हरित लेखाकरण सर्वाधिक चर्चित है। 

अभी तक राष्‍ट्रीय आय में  वृद्धि को हि आर्थिक विकास का प्रमुख संकेत माना गया है। सतत् विकास की गणना करने समय पर प्राकृतिक संसाधनों की कमियों पर ध्‍यान नहीं दिया जाता है। अत: हरिक लेखाकरण में प्राकृतिक संसाधनों की क्षति या पर्यावर्णिक गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए होने वाले व्‍यय को ध्‍यान रखा जाता है।

हरित लेखाकरण के अन्‍तर्गत स्थिर किमतों पर शुद्ध राष्‍ट्रीय आय में पर्यावर्णिक गुणवत्ता को बनाये रखने पर होने वाले खर्चा को समायोजित किया जाता है। 

हरित राष्‍ट्रीय आय = स्थिर मूल्‍यों शुद्ध राष्‍ट्रीय आय - प्राकृतिक साधनों एवं पर्यावर्णिक गुणवत्ता में कमी । 

हरित लेखाकरण आर्थिक विकास का एक उपयोगी संकेतक हो सकता है, परन्‍तु राष्‍ट्रीय आय लेखों में पर्यावर्णिक लागत, प्राकृतिक पूजी  आदि के सम्‍बन्‍ध में सही  सांख्यिकीय अनुमान न लगा सकने के कारण इसका विकास बहुत धीमा हो रहा है।