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ग्रामीण विकास, कृषि साख के संस्थागत स्रोत, गैर संस्‍थागत स्‍त्रोत







ग्रामीण विकास की अवधारणा

ग्रामीण विकास का अर्थ एवं महत्व

ग्रामीण विकास पर निबंध

ग्रामीण विकास क्या है । कृषि साख किसे कहते हैं ।

graameen vikaas kya hai . krshi saakh kise kahate hain 

ग्रामीण विकास -

ग्रामीण विकास को ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे जनसंख्‍या की निम्‍न स्‍तर आय में जीवन स्‍तर को सुधारने के लिए सामाजिक - आर्थिक स्थिति में संरचनात्‍मक रूप से परिवर्तन तथा उनके विकास की प्रक्रिया को धारणीय बनाने के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस विकास में सभी  वर्गों एवं क्षेत्रों के  बीच गहन और एकीकरण के साथ आर्थिक विकास  ग्रामीण गरीबों का आर्थिक सिकास शामिल होता है। जिसमें वास्‍तव में ग्रामीण विकास के लिए जरूरी है कि किसानों के जीवन स्‍तर को बढ़ाया जाये । जिससे किसानों की प्रमुख समस्‍या कृषि साख विपणन है ।  यदि इन्‍हे सस्‍ती साख सुविधाऍं उपलब्‍ध हो जाये तो कृषि आगतो को प्राप्‍त कर सकते है। उनकी उपज का उचित मूल्‍य प्राप्‍त होना भी अति आवश्‍यक है । वर्तमान समय में कृषि की आगतें ज्‍यादा महगी हो गयी है। इसलिए कृषि विविधीकरण एवं जैविक खेती ज्‍यादा अनुमूल होती जा रही है। 

कृषि साख किसे कहते हैं । krshi saakh kise kahate hain

कृषि साख -

कृषि  या ग्रामीण साख से अभिप्राय यह है कि  सामान्‍यत: ग्रामीण क्षेत्र में किसानों को ऋृण की सुविधा  को उपलब्‍ध्‍ा कराने से है। भारतीय किसान की वित्तीय जरूरतों को निम्‍नलिखित तीन प्रकार से साख के द्वारा पूरा किया जाता है। 

1) अल्‍पकालीन साख - किसान को अच्‍छे किस्‍म के बीज, खाद या उर्वरक आदि के खरीदने हेतु व परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए रूपया या धन की जरूरत होती है। इन कार्यों के लिए किसान हमेशा अल्‍पकालीन साख से प्राप्‍त करते है। इन ऋृणों का समय 15 महीना से कम होती है। इसे हमेशा फसल कटने के बाद हि चुकाया जाता है। 

2) मध्‍यकालीन साख - इनमें ऋृणों का समय 15 महीने से लेकर 5 वर्ष तक के लिए होता है। यह सामान्‍यत : यह ऋृण से पशुयों को खरीदना, कुओं और कृषि में लगने वाले उपकरणों की मरम्‍मत करवाना आदि के लक्ष्‍य से लिये जाते है। 

3) दीर्घकालीन साख - जैसा कि नाम से हि पता चलता है लम्‍बे समय के लिए ऋृण को उपलब्‍ध कराना है, इस ऋृण को चुकाने का समय 5 वर्ष से अधिक के लिए होता है। इस ऋृण की किसान की जरूरत कब होती है जैसे - किसान को भूमि खरीदना, भूमि को कृषि योग्‍य बनाना , कुऍं खुदवाना,  महँगें कृषि यंत्रों को खरीदना , पुराना ऋृण चुकाने आदि 

 कृषि साख के संस्थागत स्रोत। krshi saakh ke gair sansthaagat srot .

कृषि साख के स्‍त्रोत -

कृषि साख को दो प्रकार से विभाजित किया जा सकता है। 

1) संस्‍थागत स्‍त्रोत - इसमें सरकार, बैंक तथा सहकारी समितियॉ शामिल है। 

2) गैर- संस्‍थागत स्‍त्रोत - इनमें महाजन, सम्‍बन्‍धी, व्‍यापारी, भू- स्‍वामी आदि को शामिल किया जाता है। 

1) संस्‍थागत स्‍त्रोत - इस संस्‍थागत स्‍त्रोत में सरकार, व्‍यापारिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियॉं आदि को शामिल किया जाता है। सन् 1551-52 में कुल साख में संस्‍थागत स्‍त्रोतों का योगदान केवल 7 प्रतिशत था जो बढ़कर सन् 1981 में 61 प्रतिशत हो गया । इसके स्‍त्रोत निम्‍नलिखित है- 

1) सहकारी साख समितियॉं -  sahkari sakha samiti

 भारत में किसानों को महाजनो एवं साहूकारों के शोषण से बचाने के लिए सहकारी साख की  समितियॉं का आन्‍दोलन सन् 1904 में प्रारम्‍भ हुआ था। परन्‍तु इस आन्‍दोलन को गति स्‍वतन्‍त्रता के बाद ही प्राप्‍त  हुई । सन् 1951-52 में कुल कृषि साख समितियो का योगदान 3.1 था जो बढ़कर सन् 1981 में 28.6 प्रतिशत हो गया ।सन् 1950-51 में इन सहकारी  समितियों की कुल साख 24 करोड़  रूपये उपलब्‍ध करायी गयी थी । जो बढ़कर सन 2010-11 में 70,105 करोड़ रूपये हो गयी जो जो  कुल संस्‍थागत का स्‍त्रोत 16 प्रतिशत भाग है। साख को उपलब्‍ध्‍ा कराने के दृष्टि से सहकारी साख समितियों को दो भागों में बॉंटा जा सकता है। 

I) प्राथमिक सहकारी साख समितियॉं –


भारत में सहकारी समितियों का त्रिस्‍तरीय ढॉचा है। सबसे  नीचे ग्राम स्‍तर पर प्राथमिक सहकारी समितियॉं होती है। इनके कार्यों का समन्‍वय तथा इन्‍हें वित्त प्रदान करने के  लिए जिना स्‍तर पर केन्‍द्रीय सहकारी बैंक तथा राज्‍य स्‍तर पर राज्‍य सहकारी बैंक होता है। एक गॉव मेंया क्षेत्र  में कोई भी दस सदस्‍य अथवा दस से अधिक मिलकर एक प्राथमिक सहकारी साख समिति की स्थापना कर सकते है। इस समिति में का मुख्‍य कार्य यह है कि अपने सदस्‍यों को कम समय के लिए जरूरत पड़ने पर साख द्वारा प्रदान करना अथवा  उनमें परस्‍पर सहयोग की भावना का विकास करना है। मार्च 2007 में देश में 97224 लाख प्राथमिक सहकारी  साख समितियॉ कार्य कर  रहीं थी। इन समितियों के सदस्‍य के संख्‍या 12.6  करोड हो गयी थी। और जमा राशि 23,484  करोड़ रूपये थी। अन्‍त में सन् 2007 में में इन समितियों द्वारा जारी किया गया ऋृण 49,613 करोड़ रूपये थें। 

कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक -  gramin vikash bank 


किसानों की भूमि- सुधार नयी भूमी तथा महगी मशीनों को खरीदने के लिए लम्‍बे समय के लिए ऋृणों की जरूरत होती है। अत: इस उद्देश्‍य को पूरा करने के लिए विकास बैंक की स्‍थापना की गयी है। पहले इन बैंको में भूमि विकास बैंक के नाम से जाना जाता था। इन बैंकों का ढ़ाचा द्विस्‍तरीय होता है, राज्‍य स्‍तर पर राज्‍य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक तथा जिला स्‍तर पर प्राथमिक सहकारी और ग्रामीण विकास बैंक होते हैं। यद्यपि नियोजन काल में इन बैंकों का विस्‍तार हुआ है। तथा इन बैंकों की प्रगति में सन्‍तोष जनक नहीं कहा जा सकता है। सन् 1950-51 में राज्‍य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंको की संख्‍या 5 थी तो उनको सन् 2006-07  तके बढ़ाकर 20 हो गयी है। इन बैंकों द्वारा 2006-07  में 2436 करोड रूपये ऋृण जारी  किये गये । सन् 1950-51 से 2006-07 के समय तक में प्राथमिक सहकारी और ग्रामीण विकास बैंकों की संख्‍या बढ़कर 286 से 697 हो गयी । कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों द्वारा 2006-07 में 1970 करोड़ रूपये के ऋृण प्रदान किये गये । 

व्‍यापारिक बैंक -  vyaparik bank 


व्‍यापारिक बैंक का कुल कृषि साख में योगदान सीमित रहा है। सन् 1950-51 में कुल कृषि साख में व्‍यापारिक बैंकों का योगदान 0.9 प्रतिशत था जो बढ़कर सन् 1981 में 28 प्रतिशत हो गया । वास्‍तव में व्‍यापारिक बैंक सन् 1969 तक ज्‍यादातर शहरी जनसंख्‍या की जरूरतों को पूरा करने रहे, परन्‍तु सन् 1969 में 14 तथा 1980 में 6 बडे़ व्‍यापारिक बैंकों का राष्‍ट्रीयकरण कर दिया गया । कृषि को जैसे प्राथमिक क्षेत्र को उपलब्‍ध कराना इनका मुख्‍य ध्‍येय हो गया जिसके परिणामस्‍वरूप इन बैंकों का कृषि साख में योगदान तेजी से बढ़ा। व्‍यापारिक बैकों का कृषि साख में प्रत्‍यक्ष योगदान सन् 1969 में 160 करोड् रूपये का था जो 2010-11 में बढकर 3,32,706 करोड़ रूपये हो गया । 

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक - kshetriye gramin bank 

सरकार ने 26 सितम्‍बर 1975 को ग्रामीण साख की जरूरतो को पूरा करने हेतु क्षेत्रीय ग्रामीण बैक स्‍थापित करने की घोषणा की । प्रारम्‍भ 2 अक्‍टूबर 1975 को 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्‍थापित करने की किये गये । मार्च 2010 - 11 में 82 क्षेत्रीय ग्रमीण बैंक में कार्य कर रहे थे और कुल संस्‍थागत स्‍त्रोतों में इनका योगदान लगभग 9 प्रतिशत था जो कि 2010-11 में 43968 करोड़ रूपये हो गया ।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के मुख्‍य कार्य है 

1) छोटे एवं सीमान्‍त किसानों तथा कृषि मजदूरों को कृषि कार्य हेतु साख उपलबध कराना 

2) अपने क्षेत्र में ऐसे निर्धन कारीगरों, छोटे उद्यमियों आदि को ऋृण प्रदान करना जो व्‍यापार उद्योग तथा अन्‍य उत्‍पादकीय क्रियाओं को चला रहे हैं ।

3) जनता की जमाओं को स्‍वीकार करना । 

4. कृषि एवं ग्रामीण‍ विकास  के लिए राष्‍ट्रीय बैंक(NABARD -

 रिजर्व बैंक आप इण्डिया  जब जब  स्‍पना हुई सन् 1935 तभी से यह ग्रामीण साख उपलब्‍ध कराने का कार्य कर रहा है। इसके लिए बैंकक ने अवने यहॉं अलग से कोषों की स्‍थापना की  थी। परन्‍तु 12 जुलाई सन् 1982 को कृषि एवं ग्रामीसा विकास के राष्‍ट्रीय बैंक (नाबार्ड) की स्‍थापना हुई और उसे रिजर्व बैंक के कृषि साख से सम्‍बंधित सभी कार्य हस्‍तान्‍तरित कर दिये गये इसके साथ हि कृषि पुनर्वित्त एवं विकासका निगम को इस राष्‍ट्रीय बैंक में मिला दिया गया। इस प्रकास नाबार्ड ग्रामीण एवं विकास के क्षेत्र में एक शीर्ष संस्‍था के रूप में कार्य करता है।

नाबार्ड के मुख्य कार्य - nabard ke karya


1) ग्रामीण साख के लिए मुद्रा देने वाली संस्‍थाओं जैसे - राज्‍य सहकारी बैंक , वाणिज्‍य बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों  इत्‍यादि को नुर्वित देने के लिए शीर्ष संस्‍था के रूप में कार्य करना । 
2) ग्रामीण साख संस्‍थाओं के निर्माण एवं उन्‍हे सुदृढ़ बनाने से सम्‍बधित कार्य करना । 
3)ग्रामीण साख प्रदान करने वाली सभी संस्‍थाओं की क्रियाओं में समन्‍वय स्‍थापित करना। 
4) जिन परियोजनाओं के लिए पुनर्वित्त की व्‍यवस्था की गयी है,उनका निरीक्षण तथा मुल्‍यांकन करना 

गैर संस्‍थागत स्‍त्रोत - 

भारत में कृषि साख का योगदान सन् 1951-52 में  93 प्रतिशत था यह सन् 1981 में लगभग 39 प्रतिशत ही घट कर रह गया। इस प्रकार से कुल साख में गैर-संस्‍थागत स्‍त्रोतों का योगदान कम हो रहा है जो एक अच्‍छा परिवर्तन कहा जा सकता है।  किन्‍तु आज भी  यह इतना बड़ा योगदान इसके महत्‍व को दर्शाता है। एक अनुमान के अनुसार आज भी  कुल साख में महाजनों का योगदान इसके महत्‍व  को दिखाता है। एक अनुमान के अनुसार आज भी कुल साख में महाजनों का योगदान लगभग एक- तिहाई है।  वास्‍तव में इसके अनेक कारण है जिनमें प्रमुख है - आसानी से उपलब्‍धता, गारण्‍टी या साख की जरूरत नहीं गैर-उत्‍पादक कार्यों के लिए भी प्राप्ति, लिखत-पढ़त की या कानूनी औपचारिकताओं की  अधिक जरूरत भी नहीं संस्‍थागत संस्‍थाओं की लालफीताशाही इत्‍यादि।