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भारत में निम्न स्वास्थ्य के कारणों | योजनाकाल में स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बन्‍धी सरकार की नीति| आहार एवं पोषण PDF

 

भारत में निम्न स्वास्थ्य के कारणों | योजनाकाल में स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बन्‍धी सरकार की नीति| आहार एवं पोषण PDF


भारत में विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए

स्‍वास्‍थ्‍य 


स्‍वास्‍थ्‍य पूरा शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक कल्‍याण  की अवस्‍था होता है। इससे आशय है केवल रोग या बिमारी के न  होने से नहीं होता है। बल्कि व्‍यक्ति की  स्‍वस्‍थ्‍य शारीरिक के साथ मानसिक आवस्था से होता है। मानवीय  संसाधनों में स्‍वास्‍थ्‍य एक  महत्‍वपूर्ण  तत्‍व है। देश की स्‍वस्‍थ्‍य जनसंख्‍या ही उत्‍पादन संबंधि कार्यों में भागीदारी निभाती है। व्‍यक्ति के कार्य करने कि क्षमता के साथ इच्‍छा पर स्‍वास्‍थ्‍य का प्रभाव पड़ता  है। औश्र यह देश के उत्‍पादकता को प्रभावित करती है। अगर श्रमिक जब शारीरिक दृष्टि के कमजोर होगा या स्‍वस्‍थ नहीं होगा तब वह उत्‍पादन का कार्य को ठीक प्रकार से नहीं करेगा तो देश की राष्‍ट्रीय उत्‍पादन  भी  गिर जायेगा । भारत में इसी  दृष्टि से नियोजन काल मे स्‍वस्‍थ्‍य सेवाओं का विस्‍तार  किया गया । जिसके कारण स्‍वास्‍थ्‍य की दशाओं  में महत्‍वपूर्ण सुधार हुआ है। नियोजन काल में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं  के विस्‍तार को तालिका 1) मे दिखाया गया है । तालिका से स्‍पष्‍ट है कि भारत में सन् 1951 तथा सन सन् 2009 की समय के बीच में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं में  काफी विस्‍तार हुआ है। 




नियोजन काल में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के विस्‍तार के परिणामस्‍वरूप स्‍वास्‍थ्‍य दशाओं में काफी सुधार हुए है। जिससे स्‍वास्‍थ्‍य दशाओं का मापदण्‍ड एवं  उनमें सुधार निम्‍नलिखित है। 


niyojan kal me bharat me swasthya sevaye

1) जन्‍म के समय जीवन प्रत्‍याशा - 

वर्ष 1951 में जीवन प्रत्‍याशा केवल 32.1 वर्ष थी। जो बढ़कर वर्तमान 2011 में 66.1 वर्ष हो गयी है। दूसरे शब्‍दों में नियोजन समय में जीवन की औसत आयु लगभग दुगुनी गयी है। 


2) मृत्‍यु दर - 

देश में प्रति एक हजार जनसंख्‍या पर मृत्‍यु दर में भारी गिरावट आयी है। वर्ष 1951 में मृत्‍यु दर 25.1 प्रति हजार थी जो सन् 2011 में घटकर 7.1 प्रति हजार हो गई है। 


3) शिशु मृत्‍यु दर -

 नियोजन काल में शिशु मृत्‍यु दर (एक वर्ष तक की आयु के शिशुओ की मृत्‍यु ) में बहुत कमी आई है। यह वर्ष 1951 में 146 प्रति हजार थी जो घटकर वर्ष 2011 में 44 प्रति हजार हो गयी है। 


4) बाल मृत्‍यु दर -

 बाल मृत्‍यु दर (अर्थात 4 वर्ष तक की आयु के बच्‍चों की  मृत्‍यु ) भी कम हो गयी है। सन 1972 में  57.3 प्रति हजार थी जो घटकर सन् 2010 में 13.3 प्रति हजार हो गयी  है। 


5) जानलेवा बीमारियों पर नियंत्रण - 

भारत में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के विस्‍तार ने  जानलेवा बीमारियों  पर बडी सीमा तक नियंत्रण पा लिया है। वर्ष 1951 में मलेरिया के 7.5 करोड़ मामले थे जो घटकर वर्ष 2004में 18 लाख हो गये। इसी प्रकार कुष्‍ठ रोग के मामले प्रति दस हजार जनसंख्‍या पर वर्ष 1951 में 38.1 थे जो घटकर वर्ष 2005 में 1.17 रह गये है। पोलियों के मामले सन् 1951 में 29,709 थे जो कम होकर सन् 2005 में 57 हो गये। 


यह सही है कि भारत में स्‍वास्‍थ्‍य दशाओं में  प्रगति हुई है, परन्‍तु यदि विकसित व अन्‍य देशों की  तुलना करें तो इसे संतोषजनक  नहीं कहा जा सकता है। भारत में जीवन  प्रत्‍याशा 64 वर्ष है वहॉं अमेरिका में  यह 75 वर्ष, जापान में 78 वर्ष और चीन में 73 वर्ष है। इसी प्रकार शिशु मृत्‍यु दर अभी भी भारत में अपेक्षाकृत  ऊँची है। यहॉं मलेरिया, डेंगू, एड्स, तपेदिक, अन्‍धता, कैंसर, जैसी अनेक जानलेवा बीमारियॉं निरन्‍तर विद्यमान है।


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भारत में निम्न स्वास्थ्य के कारणों को समझाइए 


1) जनसंख्‍या में तेजी  वृद्धि होना - 

भारत देश में जनसख्‍या दर में तेजी से वृद्धि होने के कारण लोगों का जीवन स्‍तर नीचे गिरता जा रहा है। वह या लोगों को पौष्टिक भोजन प्राप्‍त नहीं कर पाते है। और उसके साथ स्‍वास्‍थ्‍य का स्‍तर भी नीचे गिर गया है। इसके अतिरिक्‍त जनसंख्‍या के तेजी से बढ़ने के कारण शहरों व बस्तियॉं में ज्‍यादा भीड़-भाड़ तथा गन्‍दगी का साम्राराज्‍य  फैल रहा हैजिसका स्‍वास्‍थ्‍या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 


2) ऊँची जन्‍म दर- 

भारत में जन्‍म दर बहुत ज्‍यादा है। एक स्‍त्री अपनेजीवन मेंकई बार गर्भ धारण करती है तथा बच्‍चों को जन्‍म देती है। इससे  एक ओर से मॉं के स्‍वास्‍थ्‍य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दूसरी ओर बच्‍चे स्‍वस्‍थ नहीं हो पाते है। 


3) पौष्टिकहीनता - 

भारत  में मॉं बनने  वाली ज्‍यादातर स्त्रियों को निर्धनता के कारण पौष्टिक आहार  नहीं प्राप्‍त हो पाता है। इसे पौष्टिकहीनता की दशा कहते है। जिससे अनेक प्रकार की संक्रामक बीमारियों के शिकार हो जाते है और माँ के स्‍वस्‍थ्‍य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 


4) अपर्याप्‍त स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाऍं -

भारत मे  बहुत ऐसे गाँव है या कह सकते है कि  ऐसे क्षेत्र है जहॉं पर उचित स्‍वास्‍थ्‍य की  सुविधाए उपलब्‍ध नहीं है। ऐसे में अगर बीमार पड़ने वाले व्‍यक्तियों का ठीक प्रकार से इलाज नहीं हो पाता है। वह या तो मृत्‍यु का शिकार हो जाते है या फिर बीमारी से ग्रासित रहते है। 


5) प्रदूषण एवं आवास - 

देश के अन्‍दर तेजी से जनसंख्‍या दर बढ़ी जिसके साथ हि औद्योगिकी करण भी बढ़ा। शहरों में तेजी से गन्‍दगी व प्रदूषण बढ़ा जबकि इस दिश में सुधार  की ओर  कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया । जिसके परिणामस्‍वरूप  अनेक प्रकार के रोग फैलने लगे व स्‍वास्‍थ्‍य खराब हो गया। शहरों या औद्योगिक बस्तियों में एक कमरे में कई लोग रहते है जिससे उनका स्‍वास्‍थ्‍य खराब हो जाता है। 






योजनाकाल में स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बन्‍धी सरकार की नीति - 


स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार की भूमिका क्या है?

स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए सरकार क्या उपाय कर सकती है?


स्‍वतन्‍त्रता के बाद से ही स्‍वास्‍थ्‍य के ऊपर सरकार ने विशेष ध्‍यान दिया । पंचवर्षीय योजनाओं में स्‍वास्‍थ्‍य को ऊपर करने के लिए सबसे ज्‍यादा खर्च किया गया और यह निरन्‍तर बढ़ता गया। प्रथम योजना में सरकार ने स्‍वास्‍थ्‍य के लिए 98 करोड़ रूपये खर्च किये गये थे। और नवीं योजना में इस मद पर खर्च की जाने वाली राशि बढ़कर 5,118 करोड़ रूपये हो गयी। दसवीं योजना में इस पर 9,235 करोड़ रूपये खर्च करने का प्रावधान रखा गया है। 


सन् 2002 में सरकर ने राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नीति की घोषणा की। इसमें सामान्‍य रूप से जन के मध्‍य अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए स्‍वीकार्य मानकों को प्राप्‍त करने के मुख्‍य उद्देश्‍य से निर्धारित किये गये है। इस नीति का मुख्‍य विषय है - विकेन्द्रित जनस्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली की पहुच को और ज्‍यादा बढ़ाया जाय जिससे लोग स्‍वास्‍थ्‍य निवेश में वृद्धि‍ की जायेगी एवं लोग कल्‍याणकारी कार्यक्रमों के समाभिरूप होने पर बल दिया जाये । 


ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर गरीब वर्ग के व्‍यक्तियों व पिछडे़ इलाकों में आसान, सस्‍ती व गुणवत्ता वाली स्‍वास्‍थ्‍य सेवाऍं उपलब्‍ध कराने के लिए सरकार ने वष्र 2005  में राष्‍ट्रीय ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य मिशन (NRHM)  योजना को प्रारम्‍भ किया गया है। इसके अतिरिक्‍त्‍ा उचित एवं विश्‍वसनीय स्‍वाथ्‍य को  सुविधाओं में क्षेत्रीय असमानता को सही करने के उद्देश्‍य से प्रधानमंत्री स्‍वास्‍थ्‍य  सुरक्षा योजना प्रारम्‍भ की गयी है। इसके दो संघटक है - प्रभम  देश मे छ: नये ऑल इण्डियॉं इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसस खोलना तथा द्वितीय 13 विद्यमान सरकरी मेडिकल कॉलेज  का उच्‍चीकरण करना। 





 poshan se kya aashay hai |आहार एवं पोषण PDF


पोषण से अभिप्राय यह है कि व्‍यक्तियों को सन्‍तुलित आहार प्राप्‍त हाने से होता है। अर्थात ऐसे भोजन जिनमें खनिज, विटामिन, प्रोटीन आदि प्रर्याप्‍त  में उपलब्‍ध हो । एक सामान्‍य व्‍यक्ति को स्‍वस्‍थ्‍य रहने के लिा प्रतिदिन भोजन से 3000 कैलोरी की जरूरत होती है। सुन्‍तुलित आहार प्राप्‍त होने पर ही व्‍यक्ति कुशल रूप से कार्य कर सकता है। व्‍यक्ति की  कुशलता बढ़ने पर राष्‍ट्रीय उत्‍पादन में वृद्धि होती है। 


भारत में निवास कर रहे व्‍यक्तियों को प्रतिदन औसतन 2,000 कैलोरी ही प्राप्‍त होती है। जबकि विकसित देशों में यह 3,000 से अधिक है। भारतीयों का भोजन की मात्रा तथा गुण दोनों ही दृष्टियों से पौष्टिक नहीं होता है। उमें आवश्‍यक तत्‍वों की कमी होती है। 


यहॉं पर पौष्टिकता के निम्‍न स्‍तर का प्रमुख कारण आर्थिक विकास की गति का धीमा होना है । और व्‍यापक रूप से निर्धनता एवं आय की असमानता के कारण 70-80 प्रतिशत जनसंख्‍या सन्‍तुलित आहार प्राप्‍त नहीं कर पाती  है। जिसके के परिणामस्‍वरूप इनके स्‍वास्‍थ्‍य का स्‍तर निम्‍न रहता है। 


भारत में गर्भवती स्‍त्रीयों, श्रमिकों, विद्यार्थी आदि सभी वर्गों के  लोगों के पास पौष्टिक आ‍हार को दिलाने के लिए उपाय किये जा रहे है । इसके सभी राज्‍यों में पोषण विकास खण्‍डों की स्‍थापना की गई , इसका प्रमुख कार्य है- 


1) जनसंख्‍या के विभिन्‍न वर्गों में पौष्टिकता के अभाव का आकलन करना ।


2) पोषण से सम्‍बन्धित शिक्षा कार्यक्रम का प्रसार एवं प्रचार करना ।


3) पोषण कार्यक्रमों का निरीक्षण करना ।