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अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के सिद्धांत

 antarrashtriya vyapar ke siddhant

अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रतिष्ठित सिद्धांत की व्याख्या कीजिए




अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के सिद्धांत -

1) लागतों में निरपेक्ष अन्‍तरों का सिद्धांत 

2) तुलनात्‍मक लागत सिद्धांत

3) अवसर लागत का सिद्धांत 

4) हेक्‍सर - ओहलिन सिद्धांत 

अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार से सम्‍बंधित अलग- अलग अर्थशास्त्रियों का अलग-अलग सिद्धांत है। एडम स्‍मिथ से लेकर आधुनिक अर्थशास्‍त्र हेक्‍सर - ओहलिन के सिद्धांत इसके अन्‍तर्गत रखा गया है। 

निरपेक्ष लाभ सिद्धांत क्या है उदाहरण सहित समझाइए?
लागतों में निरपेक्ष अन्‍तरों का सिद्धांत -

निरपेक्ष लागत लाभ सिद्धांत |nirpeksh labh ka siddhant

सर्वप्रथम एडम स्मिथ  ने लागतों में निरपेक्ष अन्‍तरों के सिद्धांत की व्‍याख्‍या की। स्‍वतंत्र व्‍यापार के पक्ष में एडम  स्मिथ ने जो तर्क को  प्रस्‍तुत  किया है उसका केन्‍द्र बिन्‍दु श्रम विभाजन के कारण होने वाला लाभ था। श्रम विभाजन लागतों में निरपेक्ष अन्‍तरों में यह अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर तक की अपेक्षा को रखता  है। जिससे  सभी देश को उस वस्‍तु के  उत्‍पादन करने में विशिष्टिकरण करना चाहिए,  जिसे वह दूसरे देशों की अपेक्षा सस्‍ता उत्‍पादित कर सकता हो और वह उन देशों के साथ विनिमय कर सकता हो , और जिसकी दूसरे देशों में कम कीमत में आती हो। यह एडम स्म्थि ने सन्‍तोषजनक ढंग से प्रमाणित किया है कि जो सिद्धांत घरेलू वस्‍तु विनिमय में लागू होता है वही सिद्धांत अन्‍तर्राष्‍ट्रीय वस्‍तु विनिमय में लागू होता है। 

निपेक्ष लागत सिद्धांत  सिद्धांत का उदाहरण - 

मान लीजिए की A और  B  दोनों देश हैं जो X और Y दोनों वस्‍तु की  लागतों के निरपेक्ष अन्‍तरों के आधार पर दोनों वस्‍तुओं की उत्‍पादन कर रहे है।  परन्‍तु उसमें एक देश दूसरे देश की तुलना में निरपेक्ष कम लागत पर उत्‍पादन करता है । निरपेक्ष लागत को निचे  सारणी में  दर्शाया गया है। 

 


सारणी 1 स्‍पष्‍ट करती है कि श्रम की  एक इकाई से A देश को 10X अथवा 5Y और B देश 5X अथवा 10 Y वस्‍तुऍं उत्‍पादित कर सकता है। 

दिखाई गयी स्थिति में देश A को X के उत्‍पादन में निरपेक्ष लाख है क्‍योंकि इसमें 5X से 10X अधिक है। और देश B को Y वस्‍तु की उत्‍पादन में निरपेक्ष लाभ है 10 Y अधिक है 5Y से । 

दोनों देशों के बीच व्यापार दोनों को लाभ प्रदान करेगा, जैसा कि सारणी2 में दिखाया गया है। 

 


सारणी 2  से स्‍पष्‍ट होता है कि व्‍यापार से पहले दोनों देश A और B प्रत्‍येक वस्‍तु पर श्रम की एक-एक इकाई लगाकर दोनों वस्‍तुओं X और Y की 15-15 इकाइयॉं उत्‍पादित करते है। यदि देश A वस्‍तु X के उत्‍पादन में विशिष्टिकरण करें और श्रम की दोनों इकाइयॉ लगा दे, तो उनका कुल उत्‍पादन X वस्‍तु की 20 इकाइयॉं होगा। इसी प्रकार यदि देश B केवल Y  वस्‍तु के उत्‍पादन में विशिष्टिकरण करे तो उसका कुल  उत्‍पादन Y वस्‍तु की 20 इकाइयॉं होगा व्‍यापार से दोनों देशों को X तथा Y को 5-5 इकाइयों का संयुक्‍त लाभ होगा। 

 



उपरोक्‍त रेखाचित्र 1 उत्‍पादन सम्‍भावना वक्रो की सहायता से लागतों में निरपेक्ष अन्‍तरों को दिखाता है। YA XA देश A की उत्‍पादन सम्‍भावना वक्र को दर्शाता है कि यह तो वस्‍तु X की OX A मात्रा उत्‍पादित कर सकता है । अथवा Y की OYA मात्रा । YB XB देश B का उत्‍पादन सम्‍भावना वक्र है तथा यह वस्‍तु X की OXB मात्रा अथवा वस्‍तु Y की OYB मात्रा उत्‍पादित कर सकता है। 

रेखाचित्र से यह स्‍पष्‍ट होता है कि देश A को वस्‍तु X के उत्‍पादन में निरपेक्ष लाभ है क्‍योकि OXA>OXB तथा देश B को वस्‍तु Y के उत्‍पादन में निरपेक्ष लाभ है क्‍योकि OYB > OYA |


लागतों में निरेपेक्ष अन्‍तर के सिद्धांत का मूल्‍यांकन - 

स्मिथ की व्‍याख्‍या न केवल सरल स्‍पष्‍ट और व्‍यक्‍त है, बल्कि विश्‍व व्‍यापार का अधिकांश भाग चाहे वह उष्‍णकटिबन्‍धीय और शीतोष्‍ण कटिबन्‍धीय क्षेत्रों या उद्योग-प्रधान और कृषि प्रधान देशों के बीच हो, लागतों में निरपेक्ष अन्‍तर के सिद्धांत पर ही आधारित है। फिर भी यह सिद्धांत बहुत संतोषजनक नहीं है, क्‍योंकि यह सिद्धांत बिना तर्क के यह मान लेता है कि अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के लिए जरूरी है कि निर्यात के उत्‍पादक को लागतों में निरपेक्ष लाभ प्राप्‍त हो अर्थात  निर्यातक देश दी हुई पूँजी और श्रम की सहायता से अपने प्रतिद्वन्‍दी से अधिक उत्‍पादन करने में समर्थ हो, परन्‍तु उस स्थिति में क्‍या होगा, जबकि एक देश को किसी भी वस्‍तु के उत्‍पादन में स्‍पष्‍ट श्रेष्‍ठता न प्राप्‍त हो। 




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