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उपभोक्ता बचत किसे कहते हैं ।। उपभोक्ता बचत की परिभाषा ।। उपभोक्ता की बचत का महत्व ।।

upbhokta ki bachat ki vyakhya kijiye


upbhokta ki bachat kise kahate hain

upbhokta ki bachat ka arth

उपभोक्ता बचत किसे कहते हैं ।

उपभोक्ता की बचत का अर्थ एवं परिभाषा 

हम अपने दिन प्रतिदिन  देखते है कि  जब हम उपभोग करने  के कुछ वस्‍तुऍ मूल्‍य  को  देकर खरीदते है तो उन वस्‍तुओं  से  मिलने वाली उपयोगिता उनकी कीमत अधिक होती है । जब कोई उपभोक्‍ता किसी वस्‍तु की कीमत को  देता है तो उस कीमत का  परित्‍याग करता है तथा उस वस्‍तु का उपयोग  करने पर वह उसका लाभ होता है। उभोक्‍ता द्वारा किये जाने वाले कीमत को त्‍याग करने की  तुलना में‍ मिलने वाली अधि‍क उपयोगि‍ता या लाभ का जो अन्‍तर होता है उसे ही उपभोक्‍ता की  बचत कहलाती है |

उपभोक्ता बचत की परिभाषा / upbhokta ki bachat ki paribhasha

प्रो. मार्शल  केे अनुसार - जब किसी वस्‍तु का प्रयोग  से  वंचित  रहते की अपेक्षा उपभोक्‍ता जो कीमत देने  के लिए  को  तैयार होता है  तथा  जो  कीमत वह  वास्‍तव में देता है  उसका अन्‍तर ही अतिरिक्‍त सन्‍तुष्टि का आर्थिक माप है। इसको उपभोक्‍ता की बचत  कहते है। 

प्रो. जे. के. मेहता  के अनुसार - किसी वस्‍तु से  प्राप्‍त उपभोक्‍ता की बचत  उस  वस्‍तु से प्राप्‍त सन्‍तुष्टि तथा  उस  उस  वस्‍तु  को  प्राप्‍त  करने के  लिए किये  गये त्‍याग के अन्‍तर को ही कहते है।  

उपभोक्ता बचत की मान्यताएं| upbhokta ki bachat ki manyata

1) उपभोक्‍ता  की होने  वाली बचत  का  विचार उपयोगिता ह्रास्‍य  नियम पर आधारित है  इसलिएइस  नियम  मेंभी  उपयोगिता ह्रास  नियम  की  सभी  मान्‍यताए  लागू होती है। जैसे -  उपभोक्‍ता  द्वारा वस्‍तु की  उपभोग करने की प्रवृति को  निरंतर  किया  जाना , वस्‍तु की  इकाइयों का  आकार समान होना चाहिए, वस्‍तु की उपभोग करते समय उपभोक्‍ता  की मानसिक स्थिति में  काेेई परिवर्तन नहीं  होना चाहिए, उपभोक्‍ता की आय एवं  रूचि  , फैशन आदि में परिवर्तन  नहीं होना चाहिए ।  

2)  उपयोगिता को  कीमत या मूद्रा  रूपी पैमाने  से  मापा जा सकता है।  

3) सभी वस्‍तु रूप से स्‍वतन्‍त्र है  तथा अन्‍य किसीभी प्रकार की वस्‍तुओं पर निरर्भर नहीं है। 

4) उपभोग की  जाने वाली वस्‍तु का काेेेई स्‍थानापन्‍न नहीं है। यदि वस्‍तु ऐसी है कि उसका स्‍थानापन्‍न उपलब्‍ध है तो  उन्‍हे एक वस्‍तु हि मान लेना चाहिए  ।

5) वस्‍तु को खरीदने की सभी क्रिया में मुद्रा की  सीमान्‍त उपयोगिता समान रहती है। 

उपभोक्ता ki बचत ko मापने ka सूत्र

उपभोक्ता की बचत को मापने का सूत्र

उपभोक्‍ता की  बचत = कुल उपयोगिता  - वस्‍तु  की प्रति इकाई कीमत  Xवस्‍तु की खरीदी जाने वाली वस्‍तु  की इकाइयों  की संख्‍या ।  


उदाहरण -

         = 350 - (50X5) 

         =  350- 250  

         = 100

उपभोक्ता की बचत को मापने कठिनाइयॉ | upbhokta ki bachat ko mapane me kathinaiya

1) उपयोगिता को मापा नहीं जा सकता है  - प्रो मार्शल की मान्‍यता कि उपयोगिता  को मापा जा सकता  है उचित नहीं है क्‍योंकि वैज्ञानिक दृष्टि से तत्‍व है जिसे मुद्रारूपी पैमाने से  मापना संभव नहीं  है। 

2) मुद्रा की सीमान्‍त उपयोगिता समान  नहीं  रहती है  - जब कोई व्‍यक्ति वस्‍तु खरीदते समय जैसे -  जैसे मुद्रा कम होती जाती  है  वैसे - वैसे उसके लिए मुद्रा की सीमान्‍त उपयोगिता बढती  लगती है। 3) उपभोक्‍ता की मॉग की तालिका का ज्ञान  न होना - उपभोग करने वाले व्‍यक्ति को बचत की  माप उस समय संभव है जब उपभोक्‍ता किसी  विशेष प्रकार की मॉग तालिका ज्ञात हो  । परन्‍तु यह ज्ञान होना कि वस्‍तु की  विभिन्‍न इकाइयो के लिए कितना मूल्‍य देने  के लिए तैयार होता है यह कठिन है ।  

4) उपभोक्‍ता की रूचियों एवं  स्‍वभाव में अन्‍तर  - उपभोग करने  वाले व्‍यक्ति  के रूचि‍यों एवं  स्‍वभाव में अन्‍तर के कारण  हि  विभिन्‍न व्‍यक्तियों  की वस्‍तुओं  के लिए  तीव्रता भिन्‍न- भिन्‍न होती है। अत- एक  ही वस्‍तु  के लिए  अलग- अलग व्‍यक्ति अलग- अलग कीमते देने को  तैयार होंगे।  ऐसी स्थिति में  उपभोक्‍ता की बचत की माप करने की  समस्‍या  उत्‍पन्‍न  होती है।  

 5) अनिवार्य आवश्‍यकताओं  के सम्‍बन्‍ध में यह विचार अर्थ हीन है - उपभोग करने वाले व्‍यक्ति की बचत का विचार भोजन ,  पानी तथा अनिवार्य आवश्‍यकताओं के सम्‍बन्‍ध में इसका काेेेई अर्थ नहीं होता है। क्‍योंकि उनके अभाव में मनुष्‍य को बहुत कष्‍ट का  अनुभव होता है । इसलिए इस प्रकार की वस्‍तु को प्राप्‍त करने के लिए मनुष्‍य कोई भी कीमत देने के लिए तैयार हो जाता है। 

 

उपभोक्ता की बचत का महत्व | 

upbhokta ki bachat ka mahatva

1) वस्‍तु के  प्रयोग मल्‍य तथा विनिमय मूल्‍य में  अन्‍तर करने में सहायता करता है- किसी वस्‍तु के प्रयोग करने  से मूल्‍य तथा व‍िनिमय मूल्‍य  में हमेंशा अन्‍तर होता है। तथा यही जो होता है वह उपभोक्‍ता  की  बचत को दर्शाता है  । जैसे - दियासलाई, पोस्‍टकार्ड, समाचार पत्र आदि की  उपयोगिता  अर्थात इस वस्‍तु का प्रयोग  करने का   मूल्‍य बहुत होता है । परन्‍तु इसके व‍िपरीत व‍िनिमय करने में मूल्‍य  बहुत कम होता है। इस अन्‍तर को उपभोक्‍ता की बचत के व‍िचार  से समझ सकते है।

2) दो देशों  की आर्थिक स्थिति‍यों की तुुुलना में सहायक -    जो देश जितना व‍िकाशील होगा वहॉ वस्‍तुए तथा सेवाऍ उतनी  हि सस्‍ती  होगी और इसलिए उपभोक्‍ता की  बचत अधिक होगी  । इस प्रकार से उपभोक्‍ता की  बचत द्वारा दो देशों या कालों की आर्थिक स्थिति की  तुलना किया जा सकता है।  

3) एकाधिकारी  मूल्‍य निर्धारण  में सहायक  - यदि एकाधिकारी ऐसी वस्‍तु का उत्‍पादन कर रहा है  जिससे उपभोक्‍ता को अधिक  बचत  प्राप्‍त होती है तो वह  अपनी वस्‍तु की मूल्‍य  को ऊचा कर सकता  है ।  

4) अंतर्राष्‍टीय  व्‍यापार के लाभ  की तुलना करने  में सहायक होना - उपभोक्‍ता की  बचत के द्वारा व‍िदेशी व्‍यापार से हाने  वाले लाभों की तुलना की जा  सकती है । व‍िदेशी व्‍यापार से  मिलने वाला लाभ इस पर निर्भर करता है कि व‍िदेशों से सस्‍ती वस्‍तुऍ प्राप्‍त होने के फलस्‍वरूप उपभोक्‍ता की  कितनी  बचत में  वृद्धि होती है।  

5) राजकोषीय नीति के निर्धारण करने में सहायक होता है-  वस्‍तु के मूल्‍य पर कर लगने के परिणामस्‍वरूप उसकी कीमत में वृद्धि हो जाती  है तथा उपभोक्‍ता की  बचत कम हो जाती है। परन्‍तु इसके साथ सरकार को इससे राजस्‍व की प्राप्ति भी होती है। किसी वस्‍तु की मूल्‍य में कर को लगाना तभी उचित होता है जबकि उससे सरकार को होने वाले लाभ उपभोक्‍ता की बचत में होने वाले से अधिक होती है।