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भारतीय कृषि का उद्देश्य| भारतीय कृषि की प्रकृति |भारतीय कृषि की विशेषताएं | भारतीय कृषि की समस्या




bhartiya krishi ki visheshta

bhartiya krishi ki pramukh visheshtayen bataiye

bhartiya krishi ki pramukh visheshtaon ka varnan karen






1. भारतीय कृषि की मुख्य विशेषताएं क्या है 

bhartiya krishi ki visheshta

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1- खाद्यान्‍न फसलों की अधिक प्रमुखता - देश के अन्‍दर कृषि करने योग्‍य जमीन पर जितनी फसलों को ऊगाई जाती है उनमें से 25 प्रतिशत भाग में खाद्यान्‍न फसल तथा 25 प्रतिशत भाग पर व्‍यापारिक फसले की खेती होती है।  

2- मिश्रित खेती - भारत में मिश्रित खेती देखने को मिलती है मिश्रित खेती से आशय यह है कि किसान एक ही खेत पर एक से अधिक फसलों को ऊगाता है जैसे एक ही खेत पर गेहू, चना, सरसों, अलसी, जौ आदि । 

3- फसलों में व‍ि‍व‍िधता - भारत देश के अन्‍दर अलग - अलग प्रकार के जलवायु एवं मिट्टी में भिन्‍नता पाई जाती है जिसके कारण अलग- अलग स्‍थानों पर अलग - अलग प्रकार के फसलों को ऊगाई जाती है। ऋतु के कारण देश के अन्‍दर तीन प्रकार की फसलों  की खेती की जाती है । 
        1) खरीफ की फसल  - धान, मक्‍का, ज्‍वार
        2) रबी की फसल - गेहू, चना, सरसों , राई
        3) जायद की फसल - सब्जियॉ, तरबूज, ककड़ी ।  

4. कृषि में जोतों का आकार में छोटा होना - देश में जनसंख्‍या वृद्धि के कारण भूमि का बँटवारा होने के कारण खेती आकार में छोटा होता जा रहा है क्‍योक‍ि जमीन के उत्‍तराधिकारी बढते जाने के कारण सभी के नाम पर रामान्‍तरण होने के कारण खेती के आकार छोटा होता जाता है।  

2. भारतीय कृषि का उद्देश्य क्या है?  | bhartiya krishi ka uddeshya

         1) कृषि क्षेत्र में उत्‍पादन की वृद्धि करना।
        2) खाद्यानों के क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर बनना।
        3) रोजगार में वृद्धि करना ।
        4) उद्योगों में विकास करना ।
        5) परम्‍परागत खेती में बदलाव करके नई तकनीकी वाली खेती करना।
        6) जीवन स्‍तर को ऊपर उठाना।
        7) पूजी का निर्माण करना ।
        8) यूवाओं को कृषि के क्षेत्र में आकर्षित करना ।

3. भारतीय कृषि की प्रकृति और महत्व क्या है? 

        कृषि अर्थशास्त्र की प्रकृति  |

bhartiya krishi ki prakriti

1. कृषि अर्थशास्‍त्र एक व्‍यापक व‍िषय है । जिसका अन्‍य सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं प्राकृतिक व‍िज्ञानों से एक दूसरे पर घनिष्‍ट संबंध है । इन शास्‍त्रों से कृषि अर्थशास्‍त्र का व‍िकास एवं व‍िस्‍तार को बढाने के लिए होता है। 

2. कृषि अर्थशास्‍त्र में उन सभी आर्थिक प्रेरणाओं का अध्‍ययन किया जाता है । जिनकी सहायता से कृषि उत्‍पादन में वृद्धि कर सके। 

3. कृषि का कोई निश्चित एवं खतरा भरा व्‍यवसाय है । जिनका स्‍वरूप निश्‍चित करना एक कठिन होता है । ऐसी परिस्थिति में आर्थिक प्रेरणाए कृषि के स्‍वरूप का निर्धारित करना कठिन होता है । 

4. कृषि अर्थशास्‍त्र एक ऐसा व‍िषय है जिसमें कि अर्थव‍िज्ञान के व‍िश्‍लेषण यंत्रों का बहुत व्‍यापक रूप में इसका प्रयोग किया जाता है । तथा कृषि के उत्‍पादन संबंधी व‍िभिन्‍न समस्‍याओं का समाधान आर्थिक तर्क-शास्‍त्र के द्वारा किया जाता है।   

4. भारतीय कृषि की विशेषताएं एवं महत्व -bharatiy krishi ki visheshtayen evan mahatva

                    भारतीय कृषि की  महत्व

bhartiya krishi ka mahatva


भारतीय कृषि को भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को रीढ की हड्डी् कहा जाता है । क्‍योंकि भारत के कृषि के व‍िकास पर अन्‍य क्षेत्रों के व‍िकास सम्‍भव है क्‍योंकि इसी के कारण भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पर भी व‍िकास होता है । यही कारण है कि कृषि पर सबसे ज्‍यादा महत्‍व दिया जाता है । भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में कृषि का महत्‍व निम्‍नलिखित है -

1. सर्वाधिक रोजगार का साधन - भारत में कृषि पालन पोषण के लिए एक अच्‍छा साधन के साथ रोजगार का भी आधार है। जो देश की लगभग दो-तिहाई जनसंख्‍या कृषि कार्यों में अप्रत्‍यक्ष एवं अप्रत्‍यक्ष रूप से काम करती है ।और अपना जीवन यापन करती है। यह निजी क्षेत्र का सबसे बडा व्‍यवसाय माना जाता है। कुछ व्‍यक्ति मुख्‍य रूप से अपना व्‍यवसाय के लिए अपनाया है। 

2. राष्‍ट्रीय आय का मुख्‍य साधन - भारत एक कृषि प्रधान देश है । जिस कारण भारत में कृषि वन एवं अन्‍य प्राथमिक के साथ सकल घरेलू उत्‍पाद का बहुत योगदान रहा है। राष्‍ट्रीय आय का मुख्‍य साधन खेती है  कुल आय का 51 प्रतिशत भाग खेती एवं पशु से प्राप्‍त होता है । 

3. निर्यात व्‍यापार में महत्‍व - देश में कृषि निर्यात के क्षेत्र में एक बडे भाग की पूर्ति करती है।  चाय, तम्‍बाकू, मसाला, आदि का विदेशी व्‍यापार में काफी योगदान रहा है ।  कृषि के क्षेत्र से उपजो काे निर्यात करने में बडी मात्रा में विदेशी विनिमय प्राप्‍त होता है । आवश्‍यक वस्‍तुओं का आयात करने में हानि होती है तो उस हानि को पूरा करने में यह सहायक सिद्ध होता है।  

4. प्रमुख उद्योगाे के लिए कच्‍चे माल का स्‍त्रोत -  भारत में बहुत से उद्योग कच्‍चे माल पर आधारित होते है जैसे - सूती वस्‍त्र, पटसन, चीनी, वनस्‍पति, घी, तेल, काफी, चाय, रबड,  आदि उद्योगाें के लिए  कृषि कच्‍चे माल ( रूई, चीनी, जूट, गन्‍ना, बिनौला, तिलहन) आदि की आपूर्ति करती है। 

5. सरकार की आय साधन - केन्‍द्र सरकार व राज्य सरकारों को भी कृषि से आय प्राप्‍त होती है । केन्‍द्र सरकार निर्यात कर एवं कृषि सम्‍पत्ति से कर लेता है  और राज्‍य सरकारों को मालगुजारी, सिचाई कर, कृषि आयकर आदि से आय प्राप्‍त होती है। 

6.आन्‍तरिक व्‍यापार में योगदान - देश के अन्‍दर  व्‍यापार कार्य को  करने का अप्रत्‍यक्ष महत्‍व देखा जाता है। जैसे कृषि पदार्थो के व्‍यापार से लोगों के पास रोजगार एवं आय प्राप्‍त होती है।  

7. पशुपालन को बढावा देना - कृषि के विकास में पशुओं का भी महत्‍व है जैसे पशुपालन, मछलीपालन, मुर्गीपालन आदि को बढावा देने से किसान को खाद के साथ दूध, अण्‍डा, मास आदि प्राप्‍त होता है। इसके साथ ही रोजगार भी प्राप्‍त होता है। और लोगों के पास आय का एक साधन होता है। 

8.परिवहन का विकास -देश के अंदर परिवहन के माध्यम से भारी मात्रा में खाद्यान्न, रासायनिक खाद, कृषि यंत्र, कृषि वस्तुओं आदि को लाया एवं लेजाया  जाता है। फसलों के उत्पादन में इन साधनों का काफी प्रभाव पड़ता है क्योंकि उत्पादन बढ़ाने पर परिवहन से आय की प्राप्ति अधिक होती है। कृषि विकास के लिए परिवहन का अधिक महत्व है। यह अनेक अनाज मंडियों व्यापारियों एवं औद्योगिक केन्‍द्रों की स्थापना करने में सहायक होता है।

 9. आर्थिक नियोजन में महत्व -कृषि‍ प्रधान देश होने के कारण इससे आर्थिक विकास के आधार के रूप में जाना जाता है । आर्थिक नियोजन में कृष का महत्वपूर्ण स्थान है इसका प्रभाव हमारे उद्योग धंधों वाणिज्य व्यापार तथा परिवहन के साधनों पर पड़ता है

5. भारतीय कृषि की 5 पाँच प्रमुख विशेषताओं को लिखिए bharatiy krishi ki 5 paanch pramukh visheshataon ko likhiye
6. भारतीय कृषि की विशेषताएं - bharatiy krishi ki visheshtaen
7. भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें pdf -bharatiy krishi ki pramukh visheshataon ka varnan karen pdf
8. भारतीय कृषि की विशेषता - bharatiy krishi ki visheshata

     


1) देश की जनता का आजीविका का साधन - भारतीय कृषि‍ देश की जनसंख्‍या का आजीविका का साधन है । 1981 की जनगणना के अनुसार जनता का दो तिहाई भाग कृषि क्षेत्र से ही आजीविका प्राप्‍त होता है।  

2) उत्‍पादन की परम्‍परागत तकनीक - भारत में आज भी परम्परागत तरीके से खेती की जाती है। कुछ समय से कृषि के नवीन यंत्रों एवं उपकरणों का विकास हुआ लेकिन कुछ स्‍थान पर आज भी पुराने जमाने के खुरपी एवं हल के उपयोग से हि खेती किया जाता है। 

3) भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर होना - भारत में मानसून के आधार पर खेती होती है अगर वर्षा अच्‍छी होती है तो खेती से उत्‍पादन अच्‍छा होता है इसके विपरीत अगर वर्षा अच्‍छी नहीं होती है तो उत्‍पादन नहीं हो पाती है । जिससे किसान को हानि होती है । और इसके साथ अकाल, सूखे, संकट के बादल दिखने लगता है। 

4) रोजगार का अभाव - यह सभी किसानों एवं मजदूरो को पूरे वर्ष रोजगार दिलाने में असमर्थ होता है। देश के विभिन्‍न स्‍थानों पर किसान 150 दिन से लेकर 270 दिनों तक बेरोजगार रहते है जिससे बेरोजगारी की समस्‍या बनी रहती है। 

5) श्रम प्रधानता  - भारतीय कृषि में पूॅूॅूॅजी के अनुपात में श्रम की प्रधानता है यही कारण है कि हमारा देश श्रम प्रधान देश है। इसका कारण है कि खेतो का आकार छोटा होने तथा कृ‍षकों की आर्थिक स्थिति अच्‍छी नही होती है । जिसके कारण से किसान साधनों एवं कृषि उपकरणों का प्रयोग नही कर पाते है।  

6) खाद्यान्‍न फसलों को अधिक प्रमुखता देना - कृषि फसलों के दृष्टि से देश में कृषि में खाद्यान्‍न फसलों की अधिक प्रमुखता होता है । देश में कुल कृषि क्षेत्र के लगभग 75 प्रतिशत भाग पर खाद्यान फसले ऊगाई जाती है। और 25 प्रतिशत भाग पर व्‍यापारिक फसलें ऊगाई जाती है ।  

7) राष्‍ट्रीय आय का प्रमुख स्‍त्रोत - राष्‍ट्रीय आय में कृषि एवं इससे संबंधित क्षेत्र का योगदान लगभग 41 प्रतिशत रहता है। जबकि किसी अन्‍य क्षेत्रों से इतना अधिक योगदान नही होता है ।

12. भारतीय कृषि की समस्या  - bharatiy krishi ki samasya 

1) कृषि में जोतो के छोटे आकार होने की समस्‍या - कृषि में जोतों के छोटा होना भारतीय कृषि की प्रमुख समस्‍या है  दिन प्रतिदिन जोतो का आकार छाेेेटा होता जा रहा हैै । 78 प्रतिशत जाेेेते अर्थात कुल 10.53 लाख जोतों में से 821 लाख जोतें 2 हेक्‍टेयर छोटी है ।
 इन जोतों का छोटा होने के कारण निम्‍न हे - 
    1) जनसंख्‍या वृद्धि होने के कारण
    2) उत्‍तराधिकारी नियम होने केे कारण
    3) किसानों के ऋृणों होने के कारण
    4) बटॉई एवं दान प्रथा के कारण
    5) भूमि के प्रति मोह का होना 
भारतीय कृषि के जोतों के छाेेेटा होने के रोक थाम के लिए निम्‍न उपाय किये गये है । 
    1)  ग्रामीण लघु एवं कुटीर उद्योगों का व‍िकास करना ।
    2) चकबन्‍दी करना ।
    3) सहकारी कृषि को बढावा देना ।
    4) भूमि की न्‍यूनतम सीमा को बढावा देना।
    5) भूमि की अधिकतम सीमा को कानून के द्वारा प्राप्‍त भूमि को अनार्थिक जोत वालों को देना। 
    6) उत्‍तराधिकारीयों के नियमों में परिवर्तन करना ।

2 सिचाई की समस्‍या -  भारतीय कृषि की दूसरी समस्‍या यह है कि किसानों कों कृषि के लिए प्राप्‍त मात्रा में सिचाई की सुुव‍िधाऍ उपलब्‍ध नहीं हो पाती है और किसान मानसून पर  निर्भर रहता हैै। भारत कृषि योग्‍य भूमि में लगभग 37 प्रतिशत हि सिचाई उपलब्‍ध हो पाती है और 63 प्रतिशत मानसून के वर्ष पर ही निर्भर रहती है । और कभी वर्षा कम या अधिक होती है इस कारण से इसे भारतीय कृषि को मानसून का जुआ है । 
भारत में स्‍वतंत्रता प्राप्‍त होने के बाद से सिचाई केे साधनों के बढाने के बाद से इसका स्‍तर में काफी सुधार हुआ है ।
वर्तमान समय में सिचाई का व‍िस्‍तार को बढाने की आवश्‍यता है  जिसके कारण होने वाले लाभ निम्‍न प्रकार है -  
1) किसानों की आय बढेगी और उनका जीवन स्‍तर की ऊचा होगा ।
2) बंजर भूमि पर खेेेती की जा सकेगी।
3) अकालों से छुटकारा मिलेगा ।
4) खाद्यानों व अन्‍य कृषि पदार्थो का उत्‍पादन बढेगा। 
5) ऐसे फसलों कों भी उगाया जा सकता है कि पानी अधिक मात्रा में होती है । 
6) सरकार की आय राजस्‍व के रूप में बढेगी ।
7) हरित क्रांंति कार्यक्रम को सफलता मिलेगी । 

सिचाई समस्‍या को दूर करने के लिए उपाय कियेे जा सकते हैै-    
1) वर्षा के पानीयों को जलाश्‍यों में रोककर रखने के व्‍यवस्‍था की जा सकती है जैसे तालाब, डैम्‍प, बॉध
2) कुओं की संख्‍या को बढायी जानी चाहिए ।
3) नवीन नदी एवं घाटी योजनाए प्रारंभ की  जाये।

3) खादों की समस्‍या - प्राचीन काल मे भारतीय किसान गोबर के खाद पर हि निर्भर रहते थे लेकिन वर्तमान समय पर इसमे परिवर्तन आ गया है और अब रासायनिक खादो का प्रयोग किया जाने लगा । जिससे की खेतों में उत्‍पादन की क्षमता में बढोंत्‍तरी हुई है । और कुछ व‍िद्वायों का मत है कि पर्याप्‍त मात्रा में खाद एवं उर्वरक का  प्रयोग करने से उत्‍पादन की क्षमता में तीन गुना बढ सकता है।  

4) यंत्रीकरण की समस्‍या -  भारतीय किसान परम्‍परावादी हाेेेने के कारण  ज्‍यादातर किसान हल - बैल की सहायता से ही कृषि का उत्‍पादन करते है । जो कि जुताई एवं बुुुुुवाई के लिए ट्रेेेक्‍टर फसल काटने एवं साफ करने के लिए हार्वेस्‍टर का प्रयोग किया जा सकता है और सिचाई के लिए पम्‍प का प्रयोग कर सकते है । वर्तमान समय में इसका प्रयोग बढ रहा है जिससे की कृषि क्षेत्र में उत्‍पादन क्षमता में वृद्धि हुई है । 

 भारतीय किसान यंत्राें का प्रयोग करने से लाभ - 
    1) भारतीय किसानों का समय एवं कृषि का कार्य करने में शीघ्रता होगी।
    2) खेती में उत्‍पादन करने में लागत कम होगी।
    3) किसानों की आय बढेगी।
    4) व्‍यापारिक खेती करने का होगी।
    5) रोजगार के अवसर भी कृषि उत्‍पादन से बढेंगें । 

भारतीय किसान यंत्राें का प्रयोग करने से हानि -
    1) किसानों के पास पूजी का अभाव होता है ।
    2) बेरोजगारी का भय इस काम को आडे आता है।
    3) डीजल पेट्रोल एवं मिट्टी् का तेल और बिजली की कमियों का सुधार करना ।
    4) गाॅॅवो में पुर्जों व मरम्‍मत की सुविधाऍ उपलब्ध न होने के कारण लोग शहर की ओर जाना पडता है ।


5) वित्‍त की समस्‍या - भारतीय किसानों के पास हमेंशा से पूॅजी एवं वित्‍त की  कमी बनी रहती है जिसके कारण वह अपने खेत को अपने मन के अनुसार वह भूमि का सुधार नही कर पता हैै। किसान हमेशा सेे हि बडें किसानो एवं साहूकारों से लेता है इसकी सुुुधार के लिए ग्रामीणों  क्षेत्रों में बैंक अपने शाखा की स्‍थापना की है ।