कृषि अर्थशास्त्र का अर्थ | krishi arthshastra ka arth
कृषि अर्थशास्त्र व्यक्ति और कृषि से सम्बंधित क्रियाओं एवं कृषि द्वारा प्राप्त उपहारों का अध्ययन किया जाता है। एक किसान किस तरह से कृषि से उत्पादन कर अपना जीवन यापन करता है । दूसरे शब्दों में कृषि अर्थशास्त्र से अर्थ अर्थशास्त्र के उस शाखा से है कृषि से सम्बधित समस्याओं, नियम आदि का अध्ययन किया जाता है । किसान के विभिन्न साधनों एवं समुदाय के मध्य अंतरिक संबंध का भी अध्ययन कृषि अर्थशास्त्र में किया जाता है । अर्थशास्त्र के पूर्व में कृषि शब्द को जोड देने से अर्थशास्त्र का अध्ययन कृृृषि से सम्बंधित जैसे कृषि का क्षेत्र, कृषि का संबंध, समुदाय के व्यवहार को परिमित हो जाता हैै।
कृषि अर्थशास्त्र की परिभाषा क्या है| krishi arthshastra ki paribhasha
krishi arthshastra ki paribhasha likhiye
प्रोफेसर ग्रे. के अनुसार - कृषि अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें वह अर्थशास्त्र के मूल सिद्धांत एवं तरीकों को कृषि के धन्धे में प्रयोग करता है ।
प्रो. हिल्बर्ड के अनुसार - कृषि अर्थशास्त्र में हम कृषि के व्यवस्था में लगे हुए मनुष्यों के धन कमाने और व्यय करने के नियमें का अध्ययन करने के नियमें का अध्ययन करते है ।
जोजियर के अनुसार - कृषि अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें खेेेती के साधनों के व्यवस्थापन का ज्ञान होता है कि कृषक किस तरह अपने इस धन्धेे से लाभ उठाकर सुखी जीवन यापन कर सकता है।
प्रो. ऐशबी के अनुसार - कृृृषि अर्थशास्त्र हमें कृषि के उन सिद्धांंतो और सूत्रों को बताता है जिनसे हम कम समय में उत्तम कृषि करके एक अच्छे आराम का जीवन व्यतीत कर सकतेे है।
डा. टेलर के अनुसार - कृृृषि अर्थशास्त्र में उन सिद्धांतों का ज्ञान कराता है जो कि कृषि की समस्याओं, क्या उत्पन्न करे और कैैैसेकरे, क्या बेेचे और कैसे बेचे को शासित करते है ताकि वह अपने लिये सम्पूर्ण समाज के हितो के साथ संगति रखते हुए अधिकतम शुद्ध लाभ कमा सके ।
डा. ए.बी.मिश्रा के अनुसार - कृषि अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें अर्थशास्त्र के सिद्धांतों और प्रणालियों का व्यवहार कृषि उद्योग की विशिष्ट दशाओं में किया जाता है । कृषि अर्थशास्त्र कृषि से मनुष्य की आय प्राप्त करने और उसे व्यय करने की क्रिया के अर्न्तगत सम्बंधों का अध्ययन करता है।
कृषि अर्थशास्त्र के जनक |krishi arthshastra ke janak
कृषि अर्थशास्त्र के जनक चाणक्य को कहा जाता है ।
कृषि अर्थशास्त्र से आपका क्या मतलब है कृषि अर्थशास्त्र की विषय वस्तु और प्रकृति पर चर्चा करें?
कृषि अर्थशास्त्र की प्रकृति और क्षेत्र | krishi arthshastra ki prakriti |
1. कृषि अर्थशास्त्र एक व्यापक विषय है । जिसका अन्य सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं प्राकृतिक विज्ञानों से एक दूसरे पर घनिष्ट संबंध है । इन शास्त्रों से कृषि अर्थशास्त्र का विकास एवं विस्तार को बढाने के लिए होता है।
2. कृषि अर्थशास्त्र में उन सभी आर्थिक प्रेरणाओं का अध्ययन किया जाता है । जिनकी सहायता से कृषि उत्पादन में वृद्धि कर सके।
3. कृषि का कोई निश्चित एवं खतरा भरा व्यवसाय है । जिनका स्वरूप निश्चित करना एक कठिन होता है । ऐसी परिस्थिति में आर्थिक प्रेरणाए कृषि के स्वरूप का निर्धारित करना कठिन होता है ।
4. कृषि अर्थशास्त्र एक ऐसा विषय है जिसमें कि अर्थविज्ञान के विश्लेषण यंत्रों का बहुत व्यापक रूप में इसका प्रयोग किया जाता है । तथा कृषि के उत्पादन संबंधी विभिन्न समस्याओं का समाधान आर्थिक तर्क-शास्त्र के द्वारा किया जाता है।
कृषि अर्थशास्त्र के क्षेत्र | krishi arthshastra ka kshetra
कृषि अर्थशास्त्र के क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित तीन बातों का अध्ययन किया जाता है -
(I) कृषि अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री
(II) कृषि अर्थशास्त्र का स्वभाव
(III) कृषि अर्थशास्त्र की सीमाऍ
(I) कृषि अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री -
कृषि अर्थशास्त्र एक बहुत ही गहन एवं विस्तार पूर्वक विषय है इसकी विषय - सामग्री में निम्नलिखित को शामिल किया गया है -
1. उत्पादन - कृषि अर्थशास्त्र का अध्ययन का केन्द्रीय विषय कृषि की उत्पादन में वृद्धि का विषय है । कृषि अर्थशास्त में केवल उत्पादन में वृृद्धि करना हि नही बल्कि इसके अन्तर्गत सामाजिक एवं आर्थिक वातावरण का भी अध्ययन किया जाता है । जिसमें कि कृषि कार्य संचालित किया जा रहा है ।
2. वितरण - कृषि अर्थशास्त्र की अध्ययन का एक महत्वपूर्ण भाग कृषि उपज से प्राप्त लाभ के वितरण संबंधित है। कृषि उपज से प्राप्त मूल्य से उपज के लिए विभिन्न साधनों में किस प्रकार से तथा किन साधनों के आधार पर बांटा जाये । इस तरह का अध्ययन कृषि अर्थशास्त्र के विषय में एक वितरण विभाग है । वर्तमान समय में विरतण की समस्या बहुत कठिन होती जा रही है । क्योकि धन एवं आय की असमान्यता बढती जा रही है।
3. उपभाेग - कृषि अर्थशास्त्र के अध्ययन का तीसरा महत्वपूर्ण विभाग उपभोग है इस विभाग के अन्तर्गत एक किसान के उपभोग की वस्तुओं में लगने वाले विभिन्न प्रकार के करों एवं प्रभावों का अध्ययन किया जाता है । इसके अलावा कृषकों को अपने परिवारिक खर्च की विवेक संंगत व्यवस्था करने तथा अपने विक्रय एवं क्रय किमतो के मध्य समता की समीक्षा करने के कल्याण पूर्वक सम्भव बनाता है।
4. विपणन - किसान अपने उपज को कब, कहा एवं किस माध्यम से बेचे कि विपणन लागत कम से कम आये व लाभ की मात्रा में वृद्धि हो सके । इसके बीच में मार्जिन, किसान का हिस्सा, सरकार की आयात - निर्यात नीति, अन्तर्राष्ट्रीय के बीच समझौते आदि का भी अध्ययन किया जाता है ।
5. नियोजन एवं नीति निर्माण - कृषि एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें निर्धनता के चक्र में कठिन तरीके से जुडा हुआ है । इस जुडा से मुक्त होने का एकमात्र रास्ता है नियोजन ही है । इस प्रकार कृषि अर्थशास्त्र में नियोजन एवं नीति निर्माण का विशेष महत्व होता है । यह एक अलग विभाग होता है ।
कृषि अर्थशास्त्र क्या है और कृषि अर्थशास्त्र का दायरा क्या है?
(II) कृषि अर्थशास्त्र का स्वभाव
कृषि अर्थशास्त्र के स्वभाव से अभिप्राय यह है कि कृषि अर्थशास्त्र विज्ञान है अथवा कला दोनों है यदि वह विज्ञान है तो आदर्श विज्ञान है या नीति प्रधान विज्ञान है या नीति प्रधान विज्ञान या वास्तविक या कि यथार्थ विज्ञान ।
कृषि अर्थशास्त्र एक विज्ञान है- क्योकि यह एक किसान के कृषि से सम्बंधित है जिसमें उपभोग, विनिमय, वितरण आदि से संबंधित क्रियाओं का क्रमबंंद्ध ज्ञान का भण्डार होता है । यह कार्य एवं कारण के संबंध के बारे में बताता है । जैसे - कृषि से उत्पादन के क्षेत्र में यह बताता है कि यदि कृषि कला में साथ ही साथ उन्नति नही हो तो भूमि पर उपयोग की पूजी और श्रम की मात्रा में बढाने होने से सामान्यतया कुल उपज में अनुपात में कम वृद्धि होती है । दूसरे शब्दों में कृषि के उत्पत्ति हास नियम लागू होता हैै।
कृषि अर्थशास्त्र एक आदर्श विज्ञान है - आदर्श विज्ञान उन सभी उद्देश्यों या आदर्शो को बताता है जिनकी प्राप्त के लिए मानव प्रयत्नशील रहा है । इस प्रकार का विज्ञान आदेश देता है और कैसा है के विपरीत कैसा होना चाहिये का बोध कराता है । कृषि अर्थशास्त्र हमें यह बताता है कि भारत में प्रति हेक्टर कृषि उत्पादन अन्य देशों की तुलना में बहुत कम ही है जिसकों बढाना चाहिए । देश के अन्दर किसान की ऋणग्रस्तता पीढी दर पीढी चली आ रही है। और उन्हे भारी से भारी ब्याज की अदा किये जा रहे है इसको करते करते जीवन गुजर जाता है। जिसके कारण किसान आगे नहीं बढ पाता है । इस लिए हम कह सकते है यह आदर्श विज्ञान है।
कृषि अर्थशास्त्र कला भी है - कृषि अर्थशास्त्र एक कला भी है क्योकि यह आदशों के साथ यह बताता है कि भारत मे प्रति हेक्टर में कैसे उत्पादन क्षमता को बढाया जाय और किसानों की ऋणों को कैसे मुक्त किया जाय ।
कृषि अर्थशास्त्र की सीमाएं | krishi arthshastra ki seemaen
1. कृषि की प्रकृति पर अत्यधिक निर्भरता
कृषि सामान्य प्रकृति की दशा पर निर्भर करती है बीज बोने से लेकर फसलों के पकने तक किसान प्रकृति पर ही निर्भर रहता है।
2. कृषि उपज की नसवान प्रकृति
कृषि जो पैदावार होती है वह प्रकृति के कारण प्रायर नष्ट होती रहती है तैयार फसल को भी अधिक समय तक संग्रह करके रख नहीं सकते हैं ।
3. स्थानांतरण की अधिकता
कृषि में जो पैदावार होती है वह ताल में भारी तथा आकार में बड़ी होने के कारण अधिक स्थान घेर लेती है फलता उपज का स्थानांतरण ध्येय काफी अधिक होता है।
4. उच्च विपणन में व्यय
किसान का उत्पादन थोड़ी-थोड़ी मात्रा में होता है जिसके कारण बिक्री का खर्च अधिक होता है।
5. श्रम विभाजन का अभाव
कृषि व्यवसाय के बिखरे हुए स्वरूप के कारण अन्य उद्योग धंधों की तरह ही कृषि मे श्रम विभाजन की संभावना बहुत कम पाई जाती है।
दूसरे शब्दों में कृषि अर्थशास्त्र की सीमाएं निम्नलिखित है
1. मानव की सभी क्रियाएं केवल आर्थिक पर अध्ययन कृषि अर्थशास्त्र करता है।
2. कृषि अर्थशास्त्र सामाजिक वास्तविक और सामान मनुष्य की सभी क्रियाओ के आर्थिक पहलुओं का अध्ययन करता है।
3. कृषि अर्थशास्त्र का मापदंड मुद्रा है।