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पूर्ति का अर्थ , परिभाषा, नियम, प्रकार, कारक , अपवाद, मान्‍यताऍं आदि सभी की व्‍याख्या



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पूर्ति क्या है
पूर्ति की परिभाषा दीजिए
पूर्ति की परिभाषा

purti ka arth

पूर्ति का क्या अर्थ है बताइए/ purti ka arth samjhaie

वस्‍तु की वह मात्रा जिसे उत्‍पादन कर्ता एवं उस उत्‍पादन वस्‍तु की विक्रेता दोनों के बीच एक निश्चित मूल्य पर बेचने के तत्‍यपर से है । दूसरे शब्‍दों में किसी वस्‍तु की पूर्ति से आशय उस मात्रा से से है जो किसी समय में कीमत विशेष की पर बाजार में वस्‍तु उपलब्‍ध होती है । 

पूर्ति की परिभाषा / purti ki paribhasha dijiye

प्रो. बेन्हम के अनुसार - पूर्ति का आशय वस्तु की उस निश्चित मात्रा से है जिसे प्रति इकाई के मूल्य पर किसी निश्चित अबधि में बेचने के लिए विक्रेता द्वारा प्रस्ततु किया जाता है। 

पूर्ति के नियम को समझाइये/ purti ka niyam kya hai

यदि किसी अवधि बिन्‍दू पर पर्ति की तकनीक दशाओं के अलावा अन्‍य बाते सामान्‍य रहे तो वस्‍तु विशेष की मूल्‍य में परिवर्तन होने पर उसकी पूर्ति में भी परिवर्तन होते है अत- कीमत और पूर्ति में प्रत्‍यक्ष रूप संबंध होते है । वस्‍तु की मूल्‍य में वृद्धि होने पर उस वस्‍तु की पूर्ति बढ जाती हे और उस वस्‍तु की मूल्‍य में कमी आने पर उस वस्‍तु की पूर्ति घट जाती है । वस्‍तु के प्रति जो मूल्‍य में  परिवर्तन के साथ -साथ उसकी ही दिशा में में वस्‍तुुकी पर्ति के घटने बढने की प्रवृत्ति को पूर्ति का नियम कहते है ।    

पूर्ति के प्रकारों को समझाइए, purti ke prakar

1. बाजार पूर्ति - बाजार पूर्ति को अल्‍प का‍लीन पूर्ति कहते है इस प्रकार के बाजार में पर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होते है । बाजार में पूर्ति कुछ घटें या फिर एक दिन के लिए संबंध होता है ।  

2) अल्‍पकालीन पूर्ति - बाजार प‍ूर्ति की अपेक्षा कम समय में पूर्ति में वस्‍तु के विक्रेता के पास ज्‍यादा समय रहता है । इसी अधिक समय के कारण विक्रेता वस्‍तु की पूर्ति में मॉंग के अनुसार थोडी बहुत कमी या वृद्धि कर सकता है। परन्‍तु विक्रेता के पास इतना समय नहीं होता कि वह पूर्णतया वस्‍तु की पूर्ति के अनुरूप वस्‍तु की मूल्‍य में परिवर्तन कर सके । 

3) दीर्घकालीन पूर्ति - जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि इसमें विक्रता के पास समय का अभाव नहीं पाया जात है । इसमें समय पर्याप्‍त मात्रा में होने के कारण विक्रेता अपनी वस्‍तु को वस्‍तु की प‍ूर्ति मॉंग के अनुसार बढा और घटा सकता है । यदि इसमें उत्‍पत्ति वृद्धि का नियम लागू होता है तो पूर्ति वक्र Åपर से नीचे की ओर होगा । और इसमें उत्‍पत्ति हास नियम की दशा में ये नीचे से Åपर को दायी ओर जाने वाल बनेगा।

4) सामूहिक पर्ति - जब वस्‍तु विशेष की पूर्ति विभिन्‍न माध्‍यमों के द्वारा की जाती है तो उसे सामूहिक पूर्ति कहते है । जैसे शक्ति सामूहिक पर्ति का उदाहरण है  क्‍योकि शक्ति आपूर्ति विद्युत से, कोयला, जल, पवन आदि से किया जा सकता है । 

5) संयुक्‍त पूर्ति - जब किसी वस्‍तु की पूर्ति को दो या दो से अधिक वस्‍तुए प्राप्‍त होती है तो उसे संयुक्‍त पूर्ति कहते है। 

 पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्व कौन कौन से हैं? purti ke niyam ko prabhavit karne wale karak

1) वस्‍तु विशेष की कीमत - वस्‍तु में अन्‍य बाते सामान्‍य रहे अधिक मूल्‍य पर वस्‍तु की मूल्‍य में विक्रेता को अधिक लाभ प्राप्‍त होता है तो इसलिए विक्रता उस वस्‍तु की मूल्‍य अधिक कर के बेचेगा । दूसरे शब्‍दों में वस्‍तु विशेष की मूल्‍य अधिक होने पर उसकी पर्ति अधिक होगी  । 

2)अन्य वस्तुओं की कीमतें  

अन्य वस्तुओं की कीमतें वस्तु विशेष की डिक्री ने लाभ की मात्रा को प्रभावित करते है। जैसे terikaut और रेशमी वस्त्रों की मूल्य बढ़ जाती है जबकि सूती वस्त्र की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता है इस स्थिति में सूती वस्त्र की अपेक्षा कम लाभ प्राप्त होता है जिससे उसकी पूर्ति कम हो जाएगी।

3)उत्पादन के साधनों की कीमतें

यदि किसी वस्तु की उत्पादन में साधनों की कीमतें बढ़ जाती है तो उस वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ जाएगी और उससे कुर्ती में कमी हो जाएगी यदी इसके विपरीत होता है कि उत्पादन के साधनों की मूल्य कम होती है तो वस्तु की लागत में कम होगी और उस वस्तु पूर्ति बढ़ेगी।


4)सरकार की कर नीति 

सरकार के कर नीति के कारण से भी वस्तु के मूल्य में प्रभाव पड़ता है यदि सरकार किसी वस्तु पर अधिक कर लगाती है तो वह वस्तु महंगी पड़ेगी और उसकी पूर्ति कम होगी।

5)तकनीकी ज्ञान

वर्तमान समय में तकनीकी ज्ञान से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की पूर्ति में निरंतर वृद्धि हो रही है तकनीकी सुधार में कम खर्चा लगता है और उत्पादन कर्ता का लाभ बढ़ जाता है इस कारण से वस्तुओ की पूर्ति में वृद्धि करते रहते हैं।

6उत्पादनकर्ता में परस्पर समझौता

कभी-कभी किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए सभी उत्पादक मिलकर समझौता कर लेते हैं तब वस्तु की पूर्ति में कमियां वृद्धि हो सकती है।


7)परिवहन व संचार के साधन

यदि परिवहन व संचार के साधन विकसित है तो वस्तु की पूर्ति को नियंत्रित एवं पर्याप्त बनाए रखने में हमारी सहायता प्रदान करते हैं यदि किसी वस्तु की पूर्ति क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक है और दूसरे क्षेत्र में आवश्यकता से कम है तो इन साधनों द्वारा संतुलित किया जा सकता है।

8)प्राकृतिक घटक

कुछ वस्तुओं का उत्पादन प्राकृतिक घाटको पर निर्भर करता है यदि प्राकृतिक घटक पक्ष में है तो वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है अन्यथा नहीं । जैसे कृषि क्षेत्र में यदि वर्षा पर्याप्त हो जाती है तो वस्तुओं की पूर्ति बढ़ जाती है। अगर वर्षा नहीं होती है तो वस्तुओं की पूर्ति घट जाती है।


पूर्ति के नियम के अपवाद लिखिए कोई 6

पूर्ति का नियम कौन सी वस्तु पर लागू नहीं होता है?

purti ke niyam ke apvad likhiye

पूर्ति के नियम के अपवाद लिखिए

1.भविष्य में कीमत परिवर्तन के आशा

पूर्ति का नियम उस समय में लागू नहीं हो पाता जहां आशा हो की वस्तु की कीमत भविष्य में अभी और परिवर्तन होंगे। 

यदि किसी वस्तु की कीमत बढ़ जाए तथा यह आशा हो कि भविष्य में इसकी कीमत और बढ़ेगी तो उस वस्तु को पूर्ति बढ़ने के स्थान पर घट जाएगी क्योंकि उत्पादन करता और विक्रेता इसका अधिक स्टॉक रखना पसंद करेंगे।


कृषि उत्पादन संबंधी वस्तुओं पर लागू नहीं होता 

कृष वस्तुओं के उत्पादन पर भी यह नियम लागू नहीं होता है क्योंकि प्राकृतिक पर अधिक निर्भर है अतः मूल्य में बढ़े होने पर भी कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाना आवश्यक नहीं होता।

नीलामी की वस्तुओं पर लागू ना होना

यह नियम नीलामी की वस्तुओं पर लागू नहीं होता है क्योंकि ऐसी वस्तुएं की पूर्ति हमेशा सीमित रहती है और इससे ना तो घटाया जा सकता है और ना ही बढ़ाया जा सकता है।

श्रेष्ठ कलात्मक वस्तुओं पर भी यह नियम लागू नहीं होता

ऐसी वस्तुएं जिनकी कीमत बढ़ने पर भी उनकी पूर्ति नहीं पढ़ाया जा सकता है उन वस्तुओं पर यह नियम लागू नहीं होता है।

अल्पविकसित तथा पिछड़े देशों में श्रम की पूर्ति पर लागू नहीं होता है

पूर्ति का नियम रोजगार के क्षेत्र की पूर्ति पर लागू नहीं होता है विशेषकर अल्पविकसित देशों में श्रम की पूर्ति इस नियमानुसार नहीं होती है।


पूर्ति के नियम की मान्यताएं क्या है?\पूर्ति के नियम की मान्यताएं

पूर्ति का नियम कौन सी वस्तु पर लागू नहीं होता है? purti ki manyata


1.क्रेता और विक्रेता की आय में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए

2.वस्तु के क्रेता एवं विक्रेताओं की आदत स्वभाव एवं रुचि में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए

3.वस्तु की उत्पादन के साधनों की मूल्य सामान्य मान ली जाती हैं

4.उत्पादन की तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए

5..वस्तु की कीमत में थोड़ा परिवर्तन होने के हर स्‍वरूप पूर्व में भी परिवर्तन होना चाहिए।



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