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उपभोग का अर्थ. उपभोग के प्रकार, उपभोग का महत्व

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उपभोग का अर्थ 
उपभोग के प्रकार
उपभोग का महत्व



अर्थशास्त्र में उपभोग से क्या आशय है?/ उपभोग का अर्थ और परिभाषा क्या है?

अर्थशास्‍त्र मे उपभोग का अर्थ उस क्रिया से है जिससे की मनुष्‍य को किसी प्रकार की आवश्‍यकता की पूर्ति होती है। जब आवश्‍यकता अनुसार किसी वस्‍तु का उपयोग करता है उसे उपभोग कहते है। सामान्‍यत - उपभोग का अर्थ खाने पीने के वस्‍तु से लगाया जाता है । 


  उपभोग की परिभाषा-

प्रो. ऐली के अनुसार - अर्थशास्‍त्र  के अन्‍तर्गत उपभोग से आशय मानवीय आवश्‍यकताओं की संन्‍तुष्टि हेतु आर्थिक सेवाओं तथा व्‍यक्तिगत सेवाओं का प्रयोग करने से है । 

प्रो. मेयर्स के अनुसार - स्‍वतंंत्रमानव की आवश्‍यकताओं की सन्‍तुष्टि के लिए वस्‍तुओं तथा सेवाओं का प्रत्‍यक्ष एवं अन्तिम  प्रयोग ही उपभोग कहलाता है ।  

उपभोग कितने प्रकार के होते हैं?

1. शीघ्र तथा मंद उपभोग करना -

 जब किसी वस्‍तु की उपभोग करने से उस वस्‍तु की उपयोगिता शीघ्रता से नष्‍ट होती है तो इस प्रकार के उपभोग को शीघ्र उपभोग कहते है । जैसे किसी व्‍यक्ति को भूख लगी हो तो वह खाना को शीघ्रता से नष्‍ट होती है । मन्‍द उपभोग - यह उपभोग उसके ठीक उल्‍टा होता है इस उपभोग में वस्‍तु की उपभोग की प्रवृति धीरे-धीरे नष्‍ट होती है इस प्रकार के उपभोग को मन्‍द उपभोग कहते है ।  जैसे किसी व्‍यक्ति को मकान की उपभाग करने प्रवृति है लेकिन वह मकान निर्माण धीरे धीरे होता है इसलिए इसे मन्‍द उपभोग कहते है । 

2. वर्तमान तथा स्‍थगित उपभोग करना -

वर्तमान उपभोग का आशय यह की वर्तमान में जिस वस्‍तु की आवश्‍यकता होती है उस वस्‍तु का उपभाेग वर्तमान समय मे कर लिया जाता है जैसे अभी भूख लगने पर खाना का उपभोग तुरन्‍त कर लिया जाता है भविष्‍य के लिए नही रखता है । ठीक उसी प्रकार जिस वस्‍तु की वर्तमान में आवश्‍यकता नहीं होती है तो उसे भविष्‍य के लिए रख लिया जाता है । जैसे किसी व्‍यक्ति को भूख नही लगी होती है तो भोजन को भविष्‍य के लिए रख लेता है ।    

3. उत्‍पादक तथा अन्तिम उपभोग करना -

जब किसी वस्‍तु की उपयोगिता इस नष्‍ट हो जिससे की दूसरी वस्‍तु अधिक उपयोगी हो और उस वस्‍तु का उत्‍पादन किया जाय तो इस प्रकार उपभोग को उत्‍पादक कहते है । जैसे दूध को नष्‍ट करके मिठाई बनाना आदि । इस प्रकार वस्‍तु का प्रत्‍यक्ष उपभोग न करके उत्‍पादन की गई वस्‍तु का उपभोग किया जाता है । इसके ठीक उल्‍टा होता है इसमें मनुष्‍य के आवश्‍यकता को प्रत्‍यक्ष रूप से  उपभाेग किया जाता है। 

उपभोग का महत्व

1. उपभोग आर्थिक क्रियाओं का प्रारंभिक बिन्‍दु -

 मनुष्‍य में उपभोग करने की आवश्‍यकताओं से विनिमय वितरण सम्‍बधी प्रवृति को जन्‍म देती है । जो आंगे चलकर आर्थिक कियाओं का जन्‍म दिया है । मनुष्‍य के विभिन्‍न प्रकार की आवश्‍यकताओं के कारण ही वर्तमान समय में मुद्रा जैसी स्थिति का संचालन हुआ है । 

2. देश के आर्थिक विकास - 

जिस देश में जितना अधिक उपभोग की आवश्‍यकता बढती है वह देश उतना हि विकास का स्‍तर उचा होता है ।   देश में विकास होने के कारण वहा के निवासी आरामदायक वस्‍तु का अधिक उपभोग किया जाता है । इस उपभोग से पता लगाया जा सकता की आर्थिक विकास का अनुमान लगाया जा सकता है ।  

3. रोजगार का स्‍तर का निर्धारण -

समाज में रोजगार का स्‍तर उपभोग करने की स्‍तर पर निर्भर करता है। समाज में जिसना ज्‍यादा उपभोग की प्र‍वृति होती है तो वहा वस्‍तु का निर्माण होने लगता है जिससे वहा पर उतना रोजगार करने वाले तैयार होते है   । जिससे कि रोजगार का स्‍तर बढने लगता है । इसके वितरीत अगर उपभोग की माग घटती है तो रोजगार भी घटता जाता है । 

4. बचत एवं पूजी निर्माण में महत्‍व -

जिस देश में लोगों के उपभोग में तीव्रता होती है वहॉ आय का अधिकांश भाग अपनी आवश्‍यकता अनुसार वस्‍तु पर व्‍यय करते है । अत बचत एवं पूॅजी निर्माण में दर निम्‍न स्‍तर की ओर चली जाती है । अत- ऐसी स्थिति विकासशील देशों में देखी जाती है । 

उपभोग के तत्‍व

1. उपभोग से किसी आवश्‍यकता की सन्‍तुष्टि होनी चाहिए - उपभोग करने की प्रक्रिया तभी कहलाती है जब किसी आवश्‍यकता की पूर्ति हो जिससे उसको सन्‍तुष्टि मिले । अगर किसी भूखा व्‍यक्ति के सामने भोजन रखा जाये लेकिन जिस समय वह भोजन को खायेगा तभी उपभोग कहलाता है   

2. आवश्‍यकता की सन्‍तुष्टि प्रत्‍यक्ष होनी चाहिए - उपभोग करने की आवश्‍यकता की सन्‍तुष्टि प्रत्‍यक्ष रूप से होनी चाहिए अगर आवश्‍यता की सन्‍तुष्टि अत्‍यक्ष तरीके से होती है तो उसे उत्‍पादन करते है। इसको इस प्रकार से समझते है जब कोई व्‍यक्ति कपडे को धारण/पहन्‍ता है तो उसे उपभोग कहेंगे । लेकिन अगर कोई दर्जी जब कपडे़ का उपयोग करके कपडे़ को बनाता है तो उसे  उत्‍पादन कहलायेगा। 

3. उपभोग में वस्‍तु की उपयोगिता नष्‍ट होती है न कि वस्‍तु- किसी भी वस्‍तु का उपभोग करने से उसकी उपयोगिता नष्‍ट होती है न कि वह वस्‍तु जिससे वह उपभोग करता है। अगर कोई व्‍यक्ति किसी वस्‍तु या पदार्थ का उपभोग करता है तो वह उसकी उपयोगिता में परिवर्तन हो जाती है। जैसे व्‍यक्तिा भोजन करता है तो वह भोजन नष्‍ट नहीं होता है बल्कि वह रक्‍त या मॉंस बन जाता है। 

4. उपयोगिता का नाश जल्‍दी भी हो सकता है और धीरे धीरे भी- बहुत सी ऐसी वस्‍तु होती है जिनका उपभोग करते ही तुरन्‍त उपयोगिता नष्‍ट हो जाती है जैसे रोटी, फल, दूध आदि और कुछ वस्‍तु ऐसी भी होती है जिनका उपयोगिता एक बार में नहीं होता है परन्‍तु धीरे -धीरे होती है जैसे मकान, फर्नीचर, कपडेृृ आदि।